दो सौ साठ रातों के वे तमाम ख़्वाब जिनको हमने सोते-जागते उठते-बैठते ख़यालों में या बेख़याली में देखा था आज पूरे सात सौ तीस रोज के हो […]
दो सौ साठ रातों के वे तमाम ख़्वाब जिनको हमने सोते-जागते उठते-बैठते ख़यालों में या बेख़याली में देखा था आज पूरे सात सौ तीस रोज के हो […]
उसे बेवफ़ा होना ही था, मुझसे सिलसिला तोड़ना ही था कोई राब्ता रखना ही न था, दो कदम साथ चलना भी न था एक रोज उसे बदल […]
ज़ात घर घराना मुल्क पैदाइश माँ और भी कई फितरतें इंसानी हों या ख़ुदाया एक सी होने के बावजूद उन दोनों के नक़्श कितने जुदा हैं। एक […]
बड़ी बेशऊर हैं तुम्हारी यादें न दस्तक देती हैं और न ही आमद का कोई अंदेशा न कोई इशारा और न कोई संदेसा गाहे-ब-गाहे वक्त-बे-वक्त दिन-दोपहर हर […]
परत-दर-पर तह-ब-तह ज़िन्दगी-ज़िन्दगी…। यही इक अमानत मुझे बख़्शी है मेरे खुदा ने। इसी में से ये ज़िन्दगी यानी ये उम्र अपनी तेरे नाम कर दी है मैंने। […]
आसमां जहाँ तक देखो बस एक सा दिखता है कहीं वो ख़ाने नहीं हैं इसमें जिनमें कि ये बँटा हो कोई लकीर नहीं है कोई पाला भी […]
वक्त के मेले में जब भी रात घूमने निकलती है न जाने क्यूँ हर बार अपने कुछ बेटों को जिन्हें ‘लम्हा’ कहते हैं छोड़ आती है। ये […]
सिर्फ इक लम्हा गुज़ारा था तेरे साथ कभी और इक उम्र भरी पूरी उम्र कट गई सिर्फ उसी लम्हे की यादों के सहारे ऐ दोस्त काश! और […]
अब दुनिया के मैदान-ए-जंग में जब आ ही गई हो तुम, तो कुछ मसअले कुछ नसीहतें कुछ फिकरें कुछ अक़ीदतें कुछ फन कुछ शरीअतें अपने बटुए में […]
तुम्हारे जिस्म में वह कौन सा जादू छुपा है कि जब भी तुम्हें एक नज़र देखता हूँ, तो मेरी निगाह में यक-ब-यक हज़ारों-हज़ार रेशमी गिरहें सी लग […]