यादें

बड़ी
बेशऊर हैं
तुम्हारी यादें
न दस्तक देती हैं
और न ही
आमद का कोई अंदेशा
न कोई इशारा
और न कोई संदेसा
गाहे-ब-गाहे
वक्त-बे-वक्त
दिन-दोपहर
हर वक्त हर पहर
दिल की दहलीज’
पर हौले से पाँव रखती है,
थम-थम के पैर
उठाती हुई न जाने
कैसे
किस तरफ’ से
चुपचाप चली आती हैं
और
एक ही पल में
जैसे पूरा साज़ो-सामाँ
बिखरा के
भाग जाती हैं,
बड़ी देर तक
इस बिखरे
असबाब को
मैं
समेटता रहता हूँ
सहेज-सहेज के
महफूज जगहों
पर रखता रहता हूँ
बस यही कहते हुए
बड़ी बेशऊर हैं
तुम्हारी यादें।

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