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ज़मीं को नाप चुका आसमान बाक़ी है – पवन कुमार

ज़मीं को नाप चुका आसमान बाक़ी है अभी परिन्दे के अन्दर उड़ान बाक़ी है बधाई तुमको कि पहुँचे तो इस बुलन्दी पर मगर ये ध्यान भी रखना […]

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बैठा नदी के पास यही सोचता रहा: पवन कुमार

बैठा नदी के पास यही सोचता रहाकैसे बुझाऊँ प्यास यही सोचता रहा शादाब वादियों में वो सूखा हुआ दरख़्तकितना था बेलिबास यही सोचता रहा कितने लगे हैं […]

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समन्दर

एक मुकम्मल किनारे की तलाश में हर रोज कितने किनारे बदलता है समन्दर तमाम नदियों को जज्“ब करने के बाद भी मासूम सा दिखता है समन्दर। शाम […]

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तहरीरें

एक वादा तुमसे रोज’ कुछ लिखने का तुम्हारे बारे में, अभी भी मुस्तैदी से निभा रहा हूँ। मगर इस बार तहरीरें काग’जों पर नहीं दिल के सफ’हों […]

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