वो लम्हा मेरी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल गया ऐसा लगा कि मुझसे कोई ‘मैं’ कहीं निकल गया। ढूँढ़ता हूँ उसी टुकड़े को हरेक शख़्स के […]
वो लम्हा मेरी मुट्ठी से रेत की तरह फिसल गया ऐसा लगा कि मुझसे कोई ‘मैं’ कहीं निकल गया। ढूँढ़ता हूँ उसी टुकड़े को हरेक शख़्स के […]
ख़्वाब शीशे के टुकड़े हैं टूटते हैं तो पलकें लहूलुहान हो जाती हैं मैं इस डर से कभी आँखों में ख़्वाब नहीं सजाता हूँ।
बेसबब पहले कागज पे वो हाशिया खींच देता है और उसपे ये दावा कि वो बंदिशों में लिखने का आदी नहीं है!
मसूरी एक निहायत खूबसूरत दोशीजा जिसके माथे पर सूरज की लाल बिन्दी है, तो तमाम तराशे हुए कुहसार उसके अल्हड़पन के गवाह हैं। मसूरी! जब सुबह चांदी […]
दो सौ साठ रातों के वे तमाम ख़्वाब जिनको हमने सोते-जागते उठते-बैठते ख़यालों में या बेख़याली में देखा था आज पूरे सात सौ तीस रोज के हो […]
उसे बेवफ़ा होना ही था, मुझसे सिलसिला तोड़ना ही था कोई राब्ता रखना ही न था, दो कदम साथ चलना भी न था एक रोज उसे बदल […]
ज़ात घर घराना मुल्क पैदाइश माँ और भी कई फितरतें इंसानी हों या ख़ुदाया एक सी होने के बावजूद उन दोनों के नक़्श कितने जुदा हैं। एक […]
बड़ी बेशऊर हैं तुम्हारी यादें न दस्तक देती हैं और न ही आमद का कोई अंदेशा न कोई इशारा और न कोई संदेसा गाहे-ब-गाहे वक्त-बे-वक्त दिन-दोपहर हर […]
परत-दर-पर तह-ब-तह ज़िन्दगी-ज़िन्दगी…। यही इक अमानत मुझे बख़्शी है मेरे खुदा ने। इसी में से ये ज़िन्दगी यानी ये उम्र अपनी तेरे नाम कर दी है मैंने। […]
आसमां जहाँ तक देखो बस एक सा दिखता है कहीं वो ख़ाने नहीं हैं इसमें जिनमें कि ये बँटा हो कोई लकीर नहीं है कोई पाला भी […]