वक्त के मेले में जब भी रात घूमने निकलती है न जाने क्यूँ हर बार अपने कुछ बेटों को जिन्हें ‘लम्हा’ कहते हैं छोड़ आती है। ये […]
वक्त के मेले में जब भी रात घूमने निकलती है न जाने क्यूँ हर बार अपने कुछ बेटों को जिन्हें ‘लम्हा’ कहते हैं छोड़ आती है। ये […]
सिर्फ इक लम्हा गुज़ारा था तेरे साथ कभी और इक उम्र भरी पूरी उम्र कट गई सिर्फ उसी लम्हे की यादों के सहारे ऐ दोस्त काश! और […]
अब दुनिया के मैदान-ए-जंग में जब आ ही गई हो तुम, तो कुछ मसअले कुछ नसीहतें कुछ फिकरें कुछ अक़ीदतें कुछ फन कुछ शरीअतें अपने बटुए में […]
तुम्हारे जिस्म में वह कौन सा जादू छुपा है कि जब भी तुम्हें एक नज़र देखता हूँ, तो मेरी निगाह में यक-ब-यक हज़ारों-हज़ार रेशमी गिरहें सी लग […]
अक्सर हमने देखा है थमे हुए सैलाबों में, या रूके हुए तालाबों में कुछ गंदला सा जम जाता है ऐसी ही कुछ आँखों के अन्दर थमे हुए […]
तुम्हारी मासूम धुली-धुली सी आँखों के एक कोने में इक ख़याल छुपा सा बैठा है, लफ़्जों के जाल उसे फाँस न लें, शायद इसलिए दुबक के बैठा […]
तमाम रात वे कतरे जो गिरते हैं छतों पर सूरज की चमकती किरनें जिन्हें सफ़ेद सोना बना देती हैं उनके जेवर पहन कर देखो। वे तमाम ख़्वाब […]
क्या ख़तो- किताबत का होगा, ये रिश्ते हैं, पल दो पल के, हैं आज अगर ये जिंदा तो, क्या शर्त है कल तक जीने की। ये आसमान […]
फिर भी कितनी अनजान हूँ तुमसे। ख़्वाबों में ख़्यालों में शिकवों में गिलों में मेंहदी में फूलों में सावन के झूलों में झरनों के पानी में नदियों […]
…और कभी मैं घर को लौटूँ, तुम दालान के बाहर। उस छोटी सी मुंडेर पे, जिसपे हर शाम परिंदे आ-आकार। कुछ दाने से चुन आते हैं, वक्ते […]