आहटें 2019

आहटें
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अकेलेपन के बियाबाँ तवील जंगल में
ये आहटें सी जो महसूस होती रहती हैं
कभी ख़याल कभी दिल कभी नज़र के क़रीब
समाअतों से ये मानूस होती रहती हैं

ये बाज़गश्त हैं मुझमें कि हैं बजाहिर ये
इन आहटों से मेरी रूह तक मचलती है
ये आहटें जो कभी थामती हैं साँसों को
बग़ैर इनके कहाँ नब्ज दिल की चलती है

कभी सुना के मुझे लोरियाँ – सी कानों में
कभी नवा – ए – शिकस्ता में बुदबुदाती हैं
ये आहटें भी शरारत से बाज़ आयें कब
बजा के घण्टियाँ कानों में भाग जाती हैं

मुझे अकेले में तनहा ये छोड़ती कब हैं
ये आहटें ही तो तनहाइयों की साथी हैं
ये आहटें हैं अँधेरे में जैसे रोशनदान
जो मेरे जहन में हर वक़्त जगमगाती हैं

इन आहटों के मेरी रूह से मरासिम हैं
सुना है इनके इशारे पे दिल धड़कता है
नज़र उठा के हरेक सिम्त ढूँढ़ता हूँ किसे
ये किसके ख़्वाब में अहसास – ए – गम फड़कता है

बताऊँ कैसे कि ये आफ़ताब आहट का
हर एक शाम जो ढलता सहर में खिलता है
इन आहटों के समन्दर में गर्क होकर मैं
करूँ तलाश तो अपना वजूद मिलता है

इन आहटों से ही होता है ज़िन्दगी का क़यास
ये आहटें ही मेरे जीने का वसीला हैं
है इज्तिराब इन्हीं से इन्हीं से सब्र – ओ – करार
बताऊँ मेरे लिए आहटें ये क्या – क्या हैं

ये आहटें जो न हों तो है क़ायनात तमाम
इन आहटों से ही कायम है धड़कनों का निज़ाम
अपने होने का अहसास है आहटें
इन आहटों का ही दरअस्ल जिन्दगी है नाम

@pawan kumar

 

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