किसकी कहें, हालात से अपने कौन यहाँ बेज़ार नहीं ग़म से परेशाँ सब मिलते हैं, पर कोई गमख़्वार नहीं या तो मंजिल दूर हो गयी, या फिर […]
किसकी कहें, हालात से अपने कौन यहाँ बेज़ार नहीं ग़म से परेशाँ सब मिलते हैं, पर कोई गमख़्वार नहीं या तो मंजिल दूर हो गयी, या फिर […]
कहने को इंसान बहुत हैं पर इनमें बेजान बहुत हैं मैं इक सादा वरक अकेला बंधने को जुजदान बहुत है कच्चे रंग सँभालें ख़ुद को बारिश के […]
कभी तो है कभी गोया नहीं है मगर ये सच है तू खोया नहीं है इन्हीं से अब सुकूं पाने की जिद में किसी भी दाग को […]
सभी को है ये धोका हम पले हैं शादमानी में मगर ये उम्र गुजरी है गमों की पासबानी में हो गर्दिश में तो शायद ही कोई अपना […]
अजब गुलशन का मंजर हो गया है यहाँ हर फूल नश्तर हो गया है तरसते हैं कहीं दो बूँद को लोग कहीं हरसू समन्दर हो गया है […]
जरा सी चोट को महसूस करके टूट जाते हैं सलामत आईने रहते हैं चेहरे टूट जाते हैं पनपते हैं यहाँ रिश्ते हिजाबों एहतियातों में बहुत बेबाक होते […]
दिल में कोई खलिश छुपाये हैं यार आईना ले के आये हैं अब तो पत्थर ही उनकी किस्मत हैं जिन दरख़्तों ने फल उगाये हैं दर्द रिसते […]
तुम्हें पाने की धुन इस दिल को यूँ अक्सर सताती है बंधी मुट्ठी में जैसे कोई तितली फड़फड़ाती है चहक उठता है दिन और शाम नग्में गुनगुनाती […]
वो अक्सर मेरे सब्रो-जब्त को यूँ आजमाते हैं हवा जख़्मों को देकर फिर नमक उन पर लगाते हैं यहाँ तो हर घड़ी हर सिम्त इक हंगामा बरपा […]
जहां हमेशा समंदर ने मेहरबानी की उसी जमीन पे किल्लत है आज पानी की उदास रात की चौखट पे मुन्तजिर आँखें हमारे नाम मुहब्बत ने ये निशानी […]