दिल में कोई खलिश छुपाये हैं

दिल में कोई खलिश छुपाये हैं
यार आईना ले के आये हैं

अब तो पत्थर ही उनकी कि’स्मत हैं
जिन दरख़्तों ने फल उगाये हैं

दर्द रिसते थे सारे लफ़्ज़ों से
ऐसे नग्में भी गुनगुनाये हैं

अम्न वालों की इस क’वायद पर
सुनते हैं ‘‘बुद्ध मुस्कुराये हैं’’

अब ये आवारगी का आलम है
पाँव अपने सफ’र पराये हैं

जब कि आँखें ही तर्जुमां ठहरीं
लफ़्ज़ होंठों पे क्यों सजाये हैं

कच्ची दीवार मैं था बारिश वो
हौसले खूब आज“माये हैं

देर तक इस गुमाँ में सोते रहे
दूर तक खुशगवार साये हैं

जिस्म के ज’ख़्म हों तो दिख जायें
रूह पर हमने ज’ख़्म खाये हैं

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