किस किस तरह से दोस्तो बीती है जिन्दगी दरिया सी चढ़ के, बाढ़ सी उतरी है जिन्दगी तुम पास थे तो चाँदनी अपने करीब थी तुम दूर […]
किस किस तरह से दोस्तो बीती है जिन्दगी दरिया सी चढ़ के, बाढ़ सी उतरी है जिन्दगी तुम पास थे तो चाँदनी अपने करीब थी तुम दूर […]
वो कभी गुल कभी ख़ार होते रहे फिर भी हम उनको दिल में संजोते रहे इश्क का पैरहन यूँ तो बेदाग था हम मगर उसको अश्कों से […]
कहीं पर ख़ुश्बूएँ बिखरीं, कहीं तरतीब उजालों की बड़ी पुरकैफ़ हैं राहें तेरे ख़्वाबों ख़यालों की पड़े रहते हैं कोने में लपेटे गर्द की चादर हमारी जिंदगी […]
इश्क में लज्ज़तें मिला देखूँ उससे करके कोई गिला देखूँ कुछ तो ख़ामोशियाँ सिमट जाएँ परदा-ए-दर को ले हिला देखूँ पक गए होंगे फल यकीनन अब पत्थरों […]
ज़मीं पर किस कदर पहरे हुए हैं परिंदे अर्श पर ठहरे हुए हैं बस इस धुन में कि गहरा हो तअल्लुक हमारे फ़ासले गहरे हुए हैं नजर […]
यूँ तो हर पल इन्हें भिगोना ठीक नहीं फिर भी आँख का बंजर होना ठीक नहीं दिल जो इजाजत दे तो हाथ मिलाओ तुम बेमतलब के रिश्ते […]
कोई भी तज़्किरा या गुफ़्तगू हो तेरा चर्चा ही अब तो कू-ब-कू हो मयस्सर बस वही होता नहीं है दिलों को जिसकी अक्सर जुस्तजू हो ये आँखें […]
मुम्किन है कि लहजे का मजा तुमको भी आ जाए मैं दिल से सुनाता हूँ मुझे दिल से सुना जाए सौगात वो ख़ुशियों की लुटाता है मुसलसल […]
हर इक उम्मीद कल पर टल रही है हमारी ज़िन्दगी बस चल रही है जरूरत है बहुत लब खोलने की तुम्हारी ख़ामुशी अब खल रही है मिरे […]
अब्बा के बाद घर की बदली हुई हवा है सहमा हुआ है आंगन सिमटी हुई हवा है अब देखना है किसको मिलती है कामयाबी जलते हुए दिये […]