मुम्किन है कि लहजे का मजा तुमको भी आ जाए

मुम्किन है कि लहजे का मजा तुमको भी आ जाए
मैं दिल से सुनाता हूँ मुझे दिल से सुना जाए

सौगात वो ख़ुशियों की लुटाता है मुसलसल
उस शख्स को इंसां की जगह फूल कहा जाए

अब ज़ह्न में दुश्मन का कोई ख़ौफ’ न रखिए
ये दौर वो है जिसमें कि यारों से बचा जाए

तन्हाई में यूं तेरा ख़याल आता है अक्सर
जैसे कि अँधेरे में कोई शम्मा जला जाए

साहिल से कहो अब न मिरी पुश्त सम्हाले
मैं जिद पे अड़ा हूँ कि समन्दर से लड़ा जाए

वो कौन है जो अर्श पे टांके है सितारे
वो कौन है जो चांदनी का फ’र्श बिछा जाए

अल्लाह कभी हम को भी तौफीक अता कर
मंजि’ल के लिए निकलें तो मंजि’ल पे रूका जाए

पुश्त = पीठ, अर्श = आसमान, तौफीक = सामर्थ्य

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