‘माता वैष्णों देवी’ के दर्शन …….!

bacche deviअरसे से दिल में एक आस थी कि माता वैष्णों देवी के दर्शन किये जायें. कई बार कार्यक्रम बना लेकिन प्रशासकीय व्यस्तता आड़े आती रही, परिणामस्वरूप वैष्णों देवी दर्शन कार्यक्रम बन कर भी फलीभूत नहीं हो सका. माह अक्टूबर के पहले सप्ताह में अचानक इस कार्यक्रम की रूपरेखा बनी और लगा कि जैसे ’माता का बुलावा आ गया है’, सब कुछ सकारात्मक होता गया. कुछ परिवारिक मित्रों को साथ लिया और निकल पड़े माता रानी के दर्शन के लिए…..!

चूँकि कार्यक्रम बहुत जल्दी में बना था सो सबसे बड़ी समस्या टिकिट की थी…….. यात्रा आरम्भ करने से पूर्व रेल टिकट क्लीयरेन्स की जद्दोजहद से निपटने के बाद तो जैसे आनन्द का महासागर आ गया हो. दिल्ली से रेल यात्रा करते हुए 4 अक्टूबर की प्रातः कटरा पहुंचे. कटरा में कुछ समय गुजरने के बाद सायं लगभग सात बजे हमारा जत्था बाणगंगा से jamमाता रानी के दर्शनार्थ पैदल ही चल पडा. साथ में आधा दर्जन छोटे बच्चे भी थे, उनके
थकने की चिंता हमें अवश्य सता रही थी, किन्तु आश्चर्य यह देखिए कि इस 14 किमी. की दुर्गम पैदल यात्रा में कई स्थानों पर हम बड़े तो थक कर बैठ गए ,बच्चे पूरे उत्साह से भागते- दौड़ते रहे. लगभग रात के एक बजे जब हम ’भवन’पहुंचे तो उल्लास चरम पर था. माता रानी के तुरन्त दर्शन करना चाहते थे किन्तु महिला मण्डल प्रातः स्नान करने के उपरान्त दर्शन करने के मत में था. अन्ततः महिला मण्डल की राय का आदर किया गया. हम रात में ’भवन’ में ही रूक गए, ’कालिका भवन’ के कक्ष सं0-4 में हम सब सो गए. थके हुए पैरों को आराम मिला मगर बच्चे इस समय भी पूरे उत्साह और उल्लास में थे………डॉंट-डपट- अनुनय-विनय कर उन्हें सुलाया गया.

सुबह पूरे जत्थे ने स्थान इत्यादि कर माता रानी के दर्शन किए. दर्शनार्थ लम्बी कतारें देखकर हमें महसूस हुआ कि अनजाने में ही हमने ’नवरात्रि’ में अपना कार्यक्रम बना लिया था और इस कारण दर्शनार्थियों की अतिरिक्त भीड यहॉं पर थी. कहीं पर भी पैर रखने को जगह नहीं थी मगर आस्था का सैलाब इन सब चीजों कहां परवाह करता है…….! दर्शनार्थी जयकारे लगा रहे थे , देवी दर्शन की प्रतीक्षा में दो-तीन घन्टों की प्रतीक्षा भी उन्हें भारी नहीं लग रही थी. सुन्दर फूलों से सजे मन्दिर का कोना-कोना सुगन्धित था……….! प्रत्येक स्थान पर ’भेंटों’ का प्रसारण-गायन हो रहा था. माता रानी की कृपा से हमें ’वी.आई.पी. दर्शन’ का लाभ मिला, हमारा जत्था दर्शनार्थ आगे बढ़ा …….गुफा से पार होते हुए जब माता रानी के दर्शन का अवसर आया था हम चकित थे, प्राकृतिक रूप में चमत्कृत कर देने वाली ’पिण्डी’ के दर्शन किये बाहर आए. अभी तक हम सब उसी अलौकिक पाश में थे……..माता रानी का दर्शन की आकांक्षा जो एक लम्बे समय से चली आ रही थी पूरी हुई…..!

वापसी में पुनः कटरा के लिए चल पड़े….! वापसी का यह सफर हमने दिन में किया . आते वक्त तो रास्तों को रोशनी में नहाये हुए देखने का अवसर मिला था, जाते वक्त सूरज के प्रकाश में उतरे…… हल्की गर्मी का अनुभव रास्ते भर होता रहा.

माता रानी के दर्शनभिलाषियों की संख्या वर्षभर यूं ही निर्बाध रूप से चलती रहती है . पूजा-अर्चना के छोटे-छोटे विरामों को छोड दें तो मां का दरबार 24 घण्टे खुला रहता है. ऐसी मान्यता है कि भक्त मां के दरबार में तभी जा पाता है जब मॉं उसे स्वयं बुलाती है. शक्ति के रूप में वैष्णों देवी की आम तौर पर समूचे देश में मान्यता है. एक महत्वपूर्ण धार्मिक केन्द्र के रूप में यह स्थल लम्बे समय से स्थापित चला आ रहा है. कटरा से मां के दरवार तक पहुँचाने में मार्ग को आसान बनाने के लिए ’श्राईन बोर्ड ’ ने काफी काम किया है. 14 किमी के इस दुर्गम रास्ते में लाखों टाइलों, हजारों मीटर की रैलिंग, सैकडों अल्पाहार स्टाल व धूप – बरसात से बचने के लिए शेड आदि की व्यवस्था के लिए ’बोर्ड’ के प्रयास वाकई सराहना के योग्य हैं.

बताते है कि 1922 में जम्मू-श्रीनगर हाईवे बनने से पूर्व दर्शनार्थी सयालकोट तक रेल से आते थे . सयालकोट से कटरा फिर कटरा से दरबार तक पैदल या खच्चर से जाते थे . कालांतर में हाईवे बनने के बाद ’मंथल’ मुख्य केन्द्र बना. अब जम्मू तक रेल मार्ग हो जाने के बाद ’कटरा’ बेस कैम्प हो गया है. सुनने में आया कि अति शीघ्र ही कटरा तक सीधा रेल मार्ग बिछने वाला है. समय के साथ-साथ इन परिवर्तनों ने निश्चित ही माता रानी के दर्शनों को सुलभ बनाया है.

6000 फुट ऊँचाई पर स्थित माता रानी के दर्शनों को सुलभ,स्मरणीय व सहज बनाने के लिए हमें बहुत से महानुभावों का सहयोग मिला. मैं इस सफल यात्रा के लिए श्री अनुराग यादव , डा0 नितिन ,श्री हृदेश कुमार, श्री श्याम विनोद मीणा, श्री सुदेश शर्मा ,श्री जीतेन्द्र कुमार ,श्री राजीव शर्मा के साथ अन्य कर्मचारियों का आभारी हूँ ,जिन्होंने हमारे इतने बड़े जत्थे के लिए व्यवस्था इत्यादि कराने में अभूतपूर्व सहयोग दिया.

इस धार्मिक यात्रा के बाद हमारा जत्था निकल पडा अमृतसर की ओर… फिलहाल इतना ही ,अमृतसर की इस यात्रा का वर्णन अगली पोस्ट में.

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