ज़मीं पर किस कदर पहरे हुए हैं
ज़मीं पर किस कदर पहरे हुए हैं
परिंदे अर्श पर ठहरे हुए हैं
बस इस धुन में कि गहरा हो तअल्लुक
हमारे फ़ासले गहरे हुए हैं
नजर आते नहीं अब रास्ते भी
घने कुहरे में सब ठहरे हुए हैं
करें इन्साफ की उम्मीद किससे
यहाँ मुंसिफ़ सभी बहरे हुए हैं
वही एक सब्ज़ मंज़र है कि जब से
नज़र पे काई के पहरे हुए हैं
अर्श = आकाश, मुंसिफ = न्यायाधीश, सब्ज़ = हरा रंग