………….किनारे टूट जाते हैं

images[4]टूटन भी एक प्रक्रिया है जो जीवन में लगातार चलती रहती है…..टूटन नहीं होगी तो सृजन कैसे होगा……..कभी दिल टूटता है तो कभी बंदिशें. कभी दरिया की ठोकर से साहिल टूटता है तो कभी ज़रुरत के समय इंसानी भरोसे…….! कभी वादे टूटते हैं तो कभी नाज़ुक से एहसास….! इसी टूटन का भी अपना मज़ा है. एक ग़ज़ल पिछले दिनों इन्ही एहसासों को जेहन में रखकर लिख गयी…………सोचा आप सबको भी यह ग़ज़ल नज्र कर दूं…………….मेरी इस ग़ज़ल के दूसरे शेर का मिसरा उस्ताद शायर जनाब वसीम बरेलवी साहब की एक बहुत मकबूल ग़ज़ल के एक शेर ” बहुत बेबाक आखों में ताल्लुक टिक नहीं पाता ,मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना जरूरी है “ से मिलता जुलता है. सो यह ग़ज़ल उस्ताद शायर जनाब वसीम बरेलवी साहब के नाम. तो लीजिये साहब हाज़िर हैं ग़ज़ल के शेर ………!

ज़रा सी चोट को महसूस करके टूट जाते हैं !

सलामत आईने रहते हैं, चेहरे टूट जाते हैं !!

पनपते हैं यहाँ रिश्ते हिजाबों एहतियातों में,
बहुत बेबाक होते हैं वो रिश्ते टूट जाते हैं !!

नसीहत अब बुजुर्गों को यही देना मुनासिब है,
जियादा हों जो उम्मीदें तो बच्चे टूट जाते हैं !!

दिखाते ही नहीं जो मुद्दतों तिशनालबी अपनी, ,
सुबू के सामने आके वो प्यासे टूट जाते हैं !!

समंदर से मोहब्बत का यही एहसास सीखा है,
लहर आवाज़ देती है किनारे टूट जाते हैं !!

यही एक आखिरी सच है जो हर रिश्ते पे चस्पा है,
ज़रुरत के समय अक्सर भरोसे टूट जाते हैं !!

( तस्वीर गूगल से साभार )

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