एक ग़ज़ल कच्ची सी……..

दिलों का रिश्ता कुछ इस तरह निभाया जाए, अजनबी शहर में नया दोस्त बनाया जाए।

वो नही पर उसका ख्याल बिखरा है हरसू, उसके ख्याल की रौशनी से नहाया जाए।

ताल्लुक कुछ तकल्लुफ से भी जुदा हैं, उन ताल्लुकों को तकल्लुफ से निभाया जाए।

उसके आने का कुछ शोर तो है शहर में ,अपने दर को कई रंगों से सजाया जाए…. ।

ये ग़ज़ल मेरी पत्नी अंजू ने लिखी… ग्रामर के हिसाब से ये ग़ज़ल इस्लाह की ज़रूरत महसूस करती है.मैं चाहता तो इसे ठीक कर भी सकता था मगर इस तरह इसकी खोऊब्सूरती और कच्चापन जाता रहता…ये सोच कर बिना मरम्मत के ताजी ग़ज़ल पोस्ट कर रह हूँ……..आपको क्या लगता है………….अच्छे ख्याल को बस ठीक से लफ्ज़ मिल जाए………फ़िर क्या ……या …….और क्या ? आपकी सच्ची प्रतिक्रिया की बात में आपका ही……….

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