अलविदा वियतनाम !
वियतनाम दरअसल अंकल ‘हो’ का देश माना जाता है…………… सो इस यात्रा वृत्तांत की चर्चा इसी महान व्यक्तित्व से किया जाना उचित होगा। अंकल ‘हो’ अर्थात ‘हो-चि-मिन्ह’, जिनका नाम मार्क्स क्रांति के प्रबल पुरोधा के रूप में लिया जाता है. हो-चि-मिन्ह को मार्क्स, ऐंजिल्स, लेनिन, स्टालिन के समकक्ष माना जाता है. अंकल ‘हो’ की कहानी, सर्वहा
क्रांति तथा राष्ट्रवादियों के लिए विश्व की तत्कालीन साम्राज्यवादी शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष की अद्भुत दास्तान हैं. 1890 में हो-चि-मिन्ह का जन्म साम्राज्यवादी शोषण से पीड़ित देश, वियतनाम में हुआ था जहाँ उस समय राष्ट्रवाद की सजा मौत होती थी…………..! साम्राज्यवादियों को चुनौती के रूप में ‘हो’ ने वियतनाम में राष्ट्र नायक की पहचान बनाई…… इसी दरमियां हो-चि-मिन्ह ने फ्रांस, अमेरिका, इंग्लैंड देशों की यात्रा की और साम्राज्यवादी शोषण को और करीब से समझा-देखा. इन यात्राओं के बाद साम्राज्य वादी शक्तियों के विरुद्ध ‘हो’ के तेवर और मुखर हो गए. 1917 की रूसी क्रांति से आकर्षित होकर वे फ्रांसीसी कम्यूनिस्ट पार्टी के सदस्य बने और ‘दी पारिया’ नमक पत्र प्रकाशित करना आरंभ किया, जो फ्रांसीसी साम्राज्यवाद के विरुद्ध उसके सभी उपनिवेशों में शोषित जनता को क्रांति के लिए प्रोत्साहित करती थी. साम्राज्वाद से अपने देश को मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने 1933 में ‘वियत मिन्ह’ नामक संयुक्त मोरचा बनाया। ‘हो’ 1945 तक हिंद चीन के कम्यूनिस्ट आंदोलन तथा गुरिल्ला युद्ध के सक्रिय नेता रहे. वे ‘लंबे अभियान’ और जापान विरोधी युद्ध में भी उपस्थित थे. कालांतर में सितंबर, 1945 में ‘हो’ ने वियतनाम जनवादी गणराज्य की स्थापना की. आज़ादी के इस संघर्ष में उनकी सेना का फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों से युद्ध शुरू हुआ, यहाँ फ़्रांसिसी- अंग्रेजों का गठबंधन हुआ, साम्राज्यवादियों ने साम्राज्य वापस लेना चाहा. भयंकर लड़ाइयों का दौर आरंभ हुआ और आठ वर्षों की खूनी लड़ाई के पश्चात् फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों को ‘दिएन वियेन फू’ के पास 1954 में भयंकर मात खानी पड़ी, तत्पश्चात् जिनेवा सम्मेलन बुलाना स्वीकार किया गया. इसी वर्ष हो-चि-मिन्ह वियतनामी जनवादी गणराज्य के राष्ट्रपति नियुक्त हुए. बहरहाल 1969 तक जब तक हो जिंदा रहे , ताउम्र साम्राज्यवादियों की आखों की किरकिरी बने रहे.
क्रांति तथा राष्ट्रवादियों के लिए विश्व की तत्कालीन साम्राज्यवादी शक्तियों के विरुद्ध संघर्ष की अद्भुत दास्तान हैं. 1890 में हो-चि-मिन्ह का जन्म साम्राज्यवादी शोषण से पीड़ित देश, वियतनाम में हुआ था जहाँ उस समय राष्ट्रवाद की सजा मौत होती थी…………..! साम्राज्यवादियों को चुनौती के रूप में ‘हो’ ने वियतनाम में राष्ट्र नायक की पहचान बनाई…… इसी दरमियां हो-चि-मिन्ह ने फ्रांस, अमेरिका, इंग्लैंड देशों की यात्रा की और साम्राज्यवादी शोषण को और करीब से समझा-देखा. इन यात्राओं के बाद साम्राज्य वादी शक्तियों के विरुद्ध ‘हो’ के तेवर और मुखर हो गए. 1917 की रूसी क्रांति से आकर्षित होकर वे फ्रांसीसी कम्यूनिस्ट पार्टी के सदस्य बने और ‘दी पारिया’ नमक पत्र प्रकाशित करना आरंभ किया, जो फ्रांसीसी साम्राज्यवाद के विरुद्ध उसके सभी उपनिवेशों में शोषित जनता को क्रांति के लिए प्रोत्साहित करती थी. साम्राज्वाद से अपने देश को मुक्ति दिलाने के लिए उन्होंने 1933 में ‘वियत मिन्ह’ नामक संयुक्त मोरचा बनाया। ‘हो’ 1945 तक हिंद चीन के कम्यूनिस्ट आंदोलन तथा गुरिल्ला युद्ध के सक्रिय नेता रहे. वे ‘लंबे अभियान’ और जापान विरोधी युद्ध में भी उपस्थित थे. कालांतर में सितंबर, 1945 में ‘हो’ ने वियतनाम जनवादी गणराज्य की स्थापना की. आज़ादी के इस संघर्ष में उनकी सेना का फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों से युद्ध शुरू हुआ, यहाँ फ़्रांसिसी- अंग्रेजों का गठबंधन हुआ, साम्राज्यवादियों ने साम्राज्य वापस लेना चाहा. भयंकर लड़ाइयों का दौर आरंभ हुआ और आठ वर्षों की खूनी लड़ाई के पश्चात् फ्रांसीसी साम्राज्यवादियों को ‘दिएन वियेन फू’ के पास 1954 में भयंकर मात खानी पड़ी, तत्पश्चात् जिनेवा सम्मेलन बुलाना स्वीकार किया गया. इसी वर्ष हो-चि-मिन्ह वियतनामी जनवादी गणराज्य के राष्ट्रपति नियुक्त हुए. बहरहाल 1969 तक जब तक हो जिंदा रहे , ताउम्र साम्राज्यवादियों की आखों की किरकिरी बने रहे.
इस महान नेता के मेमोरिअल म्यूजियम पर जाना और इस सर्वकालिक महान नेता के पार्थिव शरीर को देखना वास्तव में इस यात्रा की बड़ी उपलब्धि रही। मद्धम प्रकाश में मुसोलियम के केन्द्रीय कक्ष में इस नेता को शरीर को जिस तरह रासायनिक तरीके से संरक्षित किया गया है, वो चमत्कारिक था. इस नेता के प्रति इस देश की जनता की अगाध श्रद्धा है, इसका प्रमाण यह है कि इस नेता को याद करने और इनके संरक्षित शरीर के दर्शनार्थ मुसोलियम के बाहर लम्बी लाइन हमेशा देखी जा सकती है.
वियतनाम का दूसरा आकर्षण यहाँ की ‘लाइफ स्टाइल’ देखना रहा………… हनोई की सडकों को दोनों और स्ट्रीट फ़ूड की हजारों दुकाने है………. जहाँ अलसुबह से रात भर चहल-पहल बनी रहती है। यहाँ छोटे छोटे स्टूलों पर बैठकर वियतनामी जनता सूप-व्यंजनों का आनंद लेते हुए हमेशा देखी जा सकती है. सड़क के फुटपाथ इन्ही स्ट्रीट फ़ूड दुकानों से हर समय सजी रहती हैं. यहाँ के नाईट मार्केट के बारे में अवश्य लिखना चाहूँगा……… यहाँ नाईट मार्केट में शौपिंग करने का अपना अनोखा अनुभव है………….! इस मार्केट में भारी भीड़ में धक्के खाते हुए रोज़मर्रा की चीजों को खरीदते हुए जन सामान्य का उत्साह देखते ही बनता है….!
वियतनाम का एक अन्य आकर्षण यहाँ का सिल्क है . वियतनाम में सिल्क (रेशम) निर्माण करने की पुरानी परम्परा है. वियतनाम में सदियों से सिल्क को बनाने और एम्ब्रोइडरी का काम किया जा रहा है. वियतनाम के ग्रामीण अंचलों में बड़े पैमाने पर सिल्क को बुनने का काम किया जाता है. इस काम में वियतनामी महिलाओं को विशेषज्ञता हासिल है, वे समूह बनाकर सिल्क को बुनने का काम करती हैं. वियतनाम के सिल्क मार्केट से हमने सिल्क के बहुत से वस्त्र हमने ख़रीदे………… ये प्रोडक्ट अपेक्षाकृत सस्ते और बहुत खूबसूरत थे.
हमारा अगला पड़ाव ‘हेलोंग बे’ रहा. यह यूनेस्को द्वारा संरक्षित स्थल भी है……….. लगभग 1600 वर्ग किमी के क्षेत्रफल में फैली इस साईट को पानी के जहाज से देखना अत्यंत रोमांचक रहा। चरों और विशालकाय लाइमस्टोन के पहाड़ों के बीच से गुजरते हुए इन प्राकृतिक दृश्यों को देखना रुचिकर रहा. इस देश की प्रशासनिक व्यवस्था को जानना समझना भी नवीन अनुभव रहा. ‘कम्यूनों‘ को और उनकी व्यवस्थाओं को देखना रूचिकर था, ‘कम्यून‘ एक प्रशासनिक इकाई है,ठीक वैसे ही जैसे हमारे देश में ‘लोकल अर्बन बॉडी‘ हो. स्थानीय ‘कम्यून’ अपने सीमा के अन्तर्गत सार्वजनिक सम्पत्तियों, प्रशासन, पब्लिक डिलीवरी सिस्टम के लिए जिम्मेदार होती है. हमने हनोई से लगभग पचास कि0मी0 आगे एक ‘कम्यून‘ की व्यवस्था का अध्ययन किया. कम्यून द्वारा संचालित स्कूल, स्टेडियम और अस्पताल को देखने का अवसर मिला. कम्यून जिस प्रतिबद्धता और ईमानदारी से इन सार्वजनिक संस्थाओं को संचालित कर रहे हैं, वह वियतनाम के प्रशासन में कम्यून व्यवस्था की प्रभावशीलता को प्रकट करते हैं.
बहरहाल एक सप्ताह बाद जब हनोई से हम भारत के लिए विदा हुए तो, इस देश की बहुत सी यादों का पिटारा हमारे साथ था। विदाई के समय एहसास हुआ कि हम एक ऐसे विकासशील देश की यादों को संजोकर वापस हो रहे हैं जो असीम संभावनाओं से भरा हुआ देश है. एक ऐसा देश जो भले ही आर्थिक रूप से बहुत सम्पन्न न हो, मानसिक रूप से अत्यन्त दृढ है। अपनी मुख्तलिफ पहचान बनाये रखने के लिए इस देश के न केवल नेताओं ने बल्कि जन सामान्य ने साम्राज्यवादी शक्तियों से जिस मजबूती से लोहा किया है वह अदभुत तो है ही प्रेणादायक भी.
इस देश में भारतीयों से मुलाकातें नहीं हो सकीं. अंकल ‘हो’ के इस देश को इतने करीब से देखना किसी के लिए भी नया अनुभव हो सकता है….इस देश का इतिहास, लोक संस्कृति, परम्पराएं इस देश को और करीब से जानने की उत्कंठा जगाती हैं……..! इन्ही यादों को जेहन में समेटे हुए अपने प्लेन की खिड़की से वियतनाम को अलविदा कहा तो लगा कि इस विकासशील देश को अगले दस वर्षों में विकास की सीढियां चढ़ने से शायद ही कोई रोक पाए……!