एक मुलाक़ात पंकज राग से…………

कुशीनगर जाने का कार्यक्रम भी अचानक बन गया….सुबह दीपक जी, स्वतंत्र जी और उनकी धर्मपत्नी के साथ चर्चा हुई कि क्यों न एक दिन कुशीनगर चला जाए………..सहमती बनी कि कभी क्यों आज ही क्यों नहीं…… बात भी ठीक थी रविवार तो था ही………..निकल दिए थोड़ी देर बाद कुशीनगर के लिए!
कुशीनगर महत्मा बुद्ध की परिनिर्वाण स्थली के रूप में जाना जाता है. कुशीनगर गोरखपुर से महज 80 किमी दूर है…लगभग दो घंटे की यात्रा के बाद हम कुशीनगर पहुँच चुके थे. चूँकि बच्चे साथ में थे……चाय ठन्डे की उनकी जिद थी सो तय हुआ की ‘ रेफ्रेस्मेन्ट ‘ क्यों न सरकारी विश्राम गृह ‘पथिक निवास’ में किया जाए. हमने गाड़ियाँ मोड़ ली पथिक निवास की तरफ………..बच्चों के साथ हम भी जल-पान ले रहे थे…..बताया गया कि कुशीनगर में उपचुनाव चल रहा है और पर्यवेक्षक महोदय भी इसी गेस्ट हाउस में ठहरे हुए हैं…कौतूहलवस मैं पूछ बैठा कि पर्यवेक्षक महोदय कौन हैं कहाँ से आये हैं………….पता चला कि पंकज राग साहब एम.पी. काडर आई. ए.एस. हैं! मेरे लिए तो यह अवाक् रह जाने वाली स्थिति थी वही पंकज राग जिनकी कृति ‘धुनों की यात्रा’ बमुश्किल एक महीने पहले मैंने लखनऊ पुस्तक मेले से खरीदी थी औरउन्हें इस अद्भुत कृति के लिखने पर कई बार धन्यवाद देने की कोशिश कर चुका था, मगर कोई संपर्क न. न मिल पाने के कारन यह कार्य नहीं कर सका था. मैंने इस कृति का ज़िक्र कुछ दिनों पूर्व अपने ब्लॉग पर किया ही था.
खैर मैंने बिलकुल भी देर नहीं लगी श्री राग से मिलने में ……मिलने का सन्देश भेजा, उन्होंने तुरंत बुला लिया…… श्री राग से पहली मुलाक़ात इतनी आत्मीय थी कि मैं उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना न रह सका. हौले हौले से मुंह में ‘रजनीगंधा’ चलाते हुए चश्मा पहने इकहरे बदन वाले श्री राग इतने युवा लगे कि वे कहीं से भी मुझे 1990 बैच के आई.ए.एस. अधिकारी नहीं लगे. कुछ लम्हों की औपचारिकताओं के बाद वे तुरंत अनौपचारिक हो गए …………..अपने साहित्यिक सारोकारों को बताने लगे कि सिविल सेवक होने के वाबजूद वे कैसे सतत साहित्य सृजन करते रहे. व्यस्तता के बाद भी वे म . प्र. के पर्यटन व सांस्कृतिक विरासत के ऊपर काफी किताबें लिख चुके हैं. उनकी एक कृति “ये भूमंडल की रातें” कविता रूप में है जिसे कुछ दिनों पूर्व ही म.प्र. सरकार के ‘वाचस्पति अवार्ड’ से नवाजा गया है. इतिहास के अध्येता होने के नाते वे सम्प्रति 1857 की क्रांति पर एक किताब लिख रहे हैं.
श्री राग मूलत: बिहार के रहने वाले हैं. उन्होंने दिल्ली के सेन्ट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में स्नातकोत्तर किया तदोपरांत दिल्ली युनिवर्सिटी से आधुनिक भारतीय इतिहास में एम् फिल किया. वे इससे पूर्व म.प्र. की विशिष्ट प्राचीन प्रतिमाओं पर पुस्तक “Masterpieces of MP” तथा “50 years of Bhopal as capital” का लेखन भी कर चुके हैं. इसके अलावा वे प्राचीन ऐतिहासिक छाया चित्रों के संकलन की पुस्तक “Vintage Madhya Pradesh” का संपादन भी कर चुके हैं.आज कल वे पुणे स्थित राष्ट्रिय टेलीविजन संसथान के निदेशक का दायित्व संभाल रहे हैं. श्री राग से यह मुलाकात हमेशा याद रहेगी.
लेखकीय क्षमता के धनी प्रशासनिक सेवारत श्री राग की विद्वता, सृजनात्मकता तथा प्रशासकीय सूझ बूझ मेरे लिए सदीव प्रेरणा स्रोत का कार्य करेगी.

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