रेज़ा रेज़ा ख़्वाब हो गये कस्मे वादे कहीं खो गये हर लम्हा इक युग सा बीता जब से वो परदेस को गये एक बोझ था जीवन अपना […]
रेज़ा रेज़ा ख़्वाब हो गये कस्मे वादे कहीं खो गये हर लम्हा इक युग सा बीता जब से वो परदेस को गये एक बोझ था जीवन अपना […]
मुंतजिर सी रात थी, थक हार के अब सो गई आस जो आने की थी, वीरानियों में खो गई चाँद से इक बार फिर, क्यूँ हो गया […]
यक तरफा फैसला मुझे मंजूर हो गया मैं उसकी जिन्दगी से बहुत दूर हो गया माँ की इनायतें रहीं ताउम्र इसी तरह मैं तीरगी से जब भी […]
मंजर भी आज देखिए नादिर हुआ जनाब सजदे को मैं भी आपके हाजिर हुआ जनाब जुगनू सा जल के बुझ गया हासिल हुआ न कुछ अपना सफर […]
तेरी नजरों में तो सहरा हुआ है मगर दरिया वहां ठहरा हुआ है लगे हैं फिर कुछ अंदेशे सताने लहू का रंग फिर गहरा हुआ है जहाँ […]
ख़ूबसूरत से कुछ गुनाहों में उम्र गुजरे तेरी पनाहों में ख़्वाब गिरते ही टूट जाते हैं कैसी फिसलन है तेरी राहों में अब जरूरत न हो तख़ातुब […]
‘‘हसरतें दम तोड़ती है यास की आग़ोश में सैकड़ों शिकवे मचलते हैं लबे-ख़ामोश में’’¹ रात तेरे जिस्म की खुशबू से हम लिपटे रहे सुब्ह बैरन सी लगी […]
बेबस थे दिन तो सहमी हुई रात क्या कहें गुज़रे तेरे बगैर जो लम्हात, क्या कहें हमसे न पूछ यार यहाँ हाल-ए-मुंसिफी अच्छे नहीं है अपने ख़यालात […]
ज़िंदगी में इक अजब ठहराव सा है और सोचों में वही भटकाव सा है कैसी-कैसी आरजूओं के सिले में जो दिया है तूने इक बहलाव सा है […]
ये कसक दिल में रह-रह के उठती रही ज़िंदगी इस तरह क्यूँ भटकती रही बन गई गुल कभी और ख़ुश्बू कभी और कभी जिस्म बनकर सुलगती रही […]