100वीं पोस्ट के मार्फ़त आपका शुक्रिया…..!

 

दोस्तों …… एक अरसे बाद हाज़िर हूँ. संख्या के तौर पर मेरी यह 100वीं पोस्ट है…… ! 100वीं पोस्ट तक का यह सफ़र वाकई सृजन और संवाद के लिहाज़ से बहुत अच्छा रहा है.
लगभग तीन साल के इस सफ़र में पहली पोस्ट से विगत पोस्ट तक जिस तरह आप सब ने प्यार दिया, ब्लॉग पर नज़र डाली और कमेन्ट प्रेषित किये, उन सबका दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ….. !
एक उलझन थी कि 100वीं पोस्ट किस पर लिखूं…..कई शुभचिंतकों से इस विषय पर सलाह मशविरा भी किया, अधिकांश ने सलाह दी कि नयी ग़ज़ल पोस्ट करिए, अरसे से ब्लॉग पर ग़ज़ल पोस्ट नहीं की. कई ख्याल मन में थे….. कभी सचिन के सौंवें शतक पर लिखने का मन था तो कभी सहवाग के दोहरे शतक पर लिखने का जी चाहा……….. कई सृजनधर्मियों की सौवीं वर्षगाँठ भी इस बरस मानी जा रही है, सोचा उन पर लिखूं…. बहरहाल मन की उड़ान पर बंदिशें लगाते हुए अंतत: दो ग़ज़लें पोस्ट कर रहा हूँ.


( हाँ एक बात और इधर ‘लफ्ज़’ पत्रिका में मेरी कुछ गज़लें प्रकाशित हुयी हैं…. यदि वक़्त मिले तो पढ़िएगा….. प्रतिक्रियाओं का बेसब्री से इन्तिज़ार रहेगा….).

फिलहाल आपकी नज़र यह प्रस्तुति …….——

कुछ लतीफों को सुनते सुनाते हुए
उम्र गुजरेगी हंसते हंसाते हुए

अलविदा कह दिया मुस्कुराते हुए
कितने ग़म दे गया कोई जाते हुए

सारी दुनिया बदल सी गयी दोस्तो
आँख से चाँद परदे हटाते हुए

सोचता हूँ कि शायद घटे दूरियां
दरमियाँ फासले कुछ बढ़ाते हुए

एक एहसास कुछ मुखतलिफ सा रहा
सर को पत्थर के साथ आजमाते हुए

ज़िन्दगी क्या है, क्यों है, पता ही नहीं
उम्र गुजरी मगर सर खपाते हुए

याद आती रहीं चंद नदियाँ हमें
कुछ पहाड़ों में रस्ते बनाते हुए

चाँद है गुमशुदा तो कोई गम नहीं
चंद तारे तो हैं टिमटिमाते हुए

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जहाँ हमेशा समंदर ने मेहरबानी की
उसी ज़मीं पे किल्लत है आज पानी की

उदास रात की चौखट पे मुन्तजिर आँखें
हमारे नाम मुहब्बत ने ये निशानी की

तुम्हारे शहर में किस तरह ज़िन्दगी गुज़रे
यहाँ कमी है तबस्सुम की, शादमानी की

मैं भूल जाऊं तुम्हें सोच भी नहीं सकता
तुम्हारे साथ जुड़ी है कड़ी कहानी की

उसे बताये बिना उम्र भर रहे उसके
किसी ने ऐसे मुहब्बत की पासबानी की

सादर!

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