सोहगौरा को बचाना ही होगा…!

गोरखपुरके बांसगाँव तहसील क्षेत्र में सोहगौरा गाँव के विषय में लम्बे अरसे से सुनता चला आ रहा था कि यह गाँव ऐतिहासिक महत्व का है। किन्तु चाहते हुए भी प्रशासकीय व्यवस्थाओं ने इस गाँव का मुझे पहुँचने न दिया। कल अचानक मैं इस गाँव के पास से ही गुजर रहा था, तो तय किया कि सोहगौरा गाँव का भ्रमण भी कर लिया जाय।

दरअसल सोहगौरा गाँव प्रागैतिहासिक सभ्यता का महत्वपूर्ण स्थल है। ऐसा माना जाता है कि मानव सभ्यता ने जब खेती करना आरम्भ किया तो, पहले पहल जिन क्षेत्रों में खेती के प्रमाण मिले उनमें से एक गाँव सोहगौरा भी है।
पुरातत्व विदों तथा इतिहास वेत्ताओं द्वारा इस क्षेत्र के विषय में अभी बहुत विस्तार से नही लिखा गया किन्तु 1960 तथा तदोपरान्त 1974 के उत्खनन के बाद यह तथ्य प्रकाश में आया कि सोहगौरा वह गाँव है जहाँ पहले पहल हुयी धान की खेती के प्रमाण मिले हैं . इस गाँव का जब पहले पहल 1960 में उत्खनन हुआ तो इस तथ्य को गम्भीरता से नही लिया गया था, किन्तु 1974 की खुदाई में मिले मृदभाण्डों से स्पष्ट हुआ कि मृदभाण्डों को मजबूती देने के लिए मिट्टी में धान की भूसी मिलाई गई है। यही से इस धारणा को बल मिला कि धान की खेती के पहले प्रमाण विन्ध्य क्षेत्र के इस इलाके से ही मिले । इस प्रकार गाँव सोहगौरा इस क्षेत्र का महत्वपूर्ण प्रागैतिहासिक कालीन स्थल सिद्ध हो सकता है। बताया जाता है कि खुदाई के दौरान जो मृदभाण्ड और औंजार मिले थें वे 8000 ई0पू0 के हैं। निश्चित रूप से यह गाँव ताम्र पाषाण कालीन सभ्यता का एक महत्वपूर्ण स्थल सिद्ध हो सकता है। इस गाँव के भ्रमण के उपरान्त दुःख भी हुआ कि इस प्रागैतिहासिक कालीन स्थल के संरक्षण के लिए गम्भीरता पूर्वक कोई प्रयास नही किया गया है। स्थिति यह थी की भ्रमण के दौरान जब मैंने इस बावत स्थानीय ग्रामीणों से जानकारी चाही तो ग्रामीण यह बता पाने में असमर्थ की कि वास्तव में किस जगह उत्खनन किया गया था। महज 40 साल में ही अपनी खुदाई के उपरान्त यह स्थल महत्वपूर्ण होने के बावजूद यदि महत्वहीन हुआ है, तो इसके पीछे निश्चित रूप से यही कारण है कि इस स्थल को अपेक्षित रूप से संरक्षित नही किया गया। भ्रमण के दौरान मेरा यह प्रयास रहा कि 1974 के उत्खनन में श्रमिक के रूप में काम किये हुए कुछ लोगों से वार्ता की जाय तथा तत्कालीन खुदाई की स्थिति-परिस्थिति को समझा जाय। कुछ लोग ऐसे सामने आये भी जिन्होंने उस खुदाई में श्रमिक के रूप में काम किया था किन्तु वे भी बहुत ज्यादा जानकारी नही दे पाये।
हैरानी की बात यह है कि जिस स्थल पर खुदाई होना बताया गया उस स्थल पर वर्तमान में स्थानीय ग्रामीणों द्वारा घर तथा धार्मिक स्थल निर्मित कर लिये गये हैं और उस उत्खनन का कोई भी अवशेष इस गाँव में नही मिल सका। यही कहा जा सकता है कि मानवीय आवासीय तथा धार्मिक आवश्यकताओं ने एक पुरातात्विक स्थल को महत्वहीन बना दिया है।
इस बारे में जो रिपोर्ट अमर उजाला,राष्ट्रिय सहारा तथा हिन्दुस्तान दैनिक में भी प्रकाशित हुयी है ……सलंगन कर रहा हूँ
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