सिंगापुर से (पार्ट-1) !

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13 अगस्त की सुबह 7.30 बजे सिंगापुर के चाँगी एअरपोर्ट पर उतरने के बाद यह महसूस होने लगा था कि हम अब दुनिया के उस देश की सरजमीं पर कदम रख चुकें हैं जिसे दुनिया के सबसे विकसित और प्रगतिशील देश के रूप में जाना जाता है। सिंगापुर के अगले पाँच दिन नये – नये अनुभवों से परिपूर्ण रहे, वो चाहे सिविल सर्विसेज कॉलेज में सिंगापुर के प्रशासन के बारे में जानकारी लेना रहा हो
अथवा भारतीय उच्चायुक्त कार्यालय में स्वतंत्रता दिवस पर तिरंगा फहराने का गौरवशाली क्षण रहा हो।
सिंगापुर के पब्लिक डिलीवरी सिस्टम को देखना समझना अपने – आप में नया अनुभव था। इस सिस्टम में सिंगापुर के लोकल ट्रेन (एम0आर0टी0) का सफर, लोकल बस सर्विस में यात्रा करना, पानी की कमीं से झूझते हुए देश में स्वच्छ पानी की आपूर्ति देखना, कन्क्रीट और सीमेण्ट की बहुमंजिली इमारतों के बीच जगह-जगह हरियाली व पार्कों का होना इस देश की बेहतरीन प्रशासनिक व्यवस्था और सुलझे हुए सिविक-सेन्स की अद्भुत दास्तान जैसा था। अपने सीमित संसाधनों के माध्यम से कोई देश कैसे आर्थिक प्रगति और खुशहाली का सफर तय करता है यह सिंगापुर से बेहतर दुनिया में शायद ही कहीं पर देखने को मिले। सिविल सर्विसेज कॉलेज सिंगापुर में बहुत रोचक क्लास रूम माहौल में वहां के प्रशासनिक अधिकारियों के साथ सिंगापुर के प्रशासन के बारे में जानना-समझना अत्यन्त महत्वपूर्ण रहा। योजनाओं का निर्माण और उनका सफलता पूर्वक क्रियान्वयन सिंगापुर की पहचान है। हैरानी की बात यह थी कि सिंगापुर में नीति निर्माण को लेकर उच्च प्रशासकीय स्तर पर जब़रदस्त प्रतिबद्धता देखने को मिली। अर्बन रि-डेवलपमेण्ट अथॉरिटी तथा पब्लिक यूटीलिटी बोर्ड के अधिकारियों से मिलने के बाद यह धारणा और भी पुख्ता हुई कि किसी भी योजना के सफल क्रियान्वयन के लिए दूरदर्शिता, संसाधनों के अधिकाधिक उपयोग तथा प्रशासकीय प्रतिबद्धता अत्यन्त आवश्यक है।
पचास लाख जनसँख्या वाले सिंगापुर की एक पहचान यह भी है कि इस सिटी – स्टेट में सब-कुछ व्यवस्थित सा दिखता है। बड़ी-बड़ी इमारतों के ऊपर हरियाली बनाए रखने का जज्ब़ा इस देश को इको-फ्रेण्डली बनाए हुए है। मरीना बीच पर फ्लायर पर पूरे शहर को देखना अद्भुत था। सत्तावन मंजिली इमारत की छत पर बाग होना एक आश्चर्य से कम नहीं था।यह सौभाग्य था कि जब हम सिंगापुर पहुँचे तो दो महत्वपूर्ण घटनाक्रम हमारे सामने हुए। सिंगापुर मे स्वतंत्रता दिवस 09 अगस्त को मनाया जाता है। 13 अगस्त को जब हम सिंगापुर पहुँचे तो यह देश स्वतंत्रता दिवस के जोश मंे पूरी तरह डूबा हुआ था। जगह-जगह राष्ट्रीय ध्वज फहरे हुए थे। दूसरी महत्वपूर्ण घटना यह थी कि 13 अगस्त को ही सिंगापुर में यूथ-ओलम्पिक गेम्स का शुभारम्भ हुआ था, जिस कारण पूरा शहर/राष्ट्र जोश मंे डूबा हुआ था।
सिंगापूर में कुछ भारतीय मित्रों से मिलना सुखद अहसास रहा। अरुण दीक्षित जी से यहाँ पहली बार मुलाकात हुई। वे एसेन्चर कन्सल्टेण्ट कम्पनी में कार्यरत हैं। उनके कुछ रिश्तेदारों से मेरी मित्रता भारत मे थी, उन्हीं के माध्यम से यह ज्ञात हुआ कि सिंगापुर में श्री अरुण दीक्षित कार्यरत हैं। सिंगापुर जाने के बाद स्वयं अरुण दीक्षित द्वारा मुझसे सम्पर्क करना उल्लेखनीय बात थी। श्री दीक्षित द्वारा अपने स्थानीय भारतीय मित्रों से मिलवाना भी इसी मुलाकात को महत्वपूर्ण अंग रहा। यहाँ आने के बाद लखनऊ से सर्वत एम0 द्वारा फोन पर बताया गया कि ब्लागर श्रद्धा जैन भी सिंगापुर में ही है। श्रद्धा जी को मैं विगत लम्बे अर्से से पढ़ता चला आ रहा था। गज़ले लिखने में श्रद्धा जी ने ब्लॉग समुदाय में अपनी अच्छी पहचान बनाई है। सर्वत एम साहब ने मुझे और श्रद्धा जी को मिलवाने में महत्वपूर्ण मध्यस्थ की अदा की। श्रद्धा जी के घर जाकर उनको सुनना और लज़ीज डिनर लेना इस यात्रा की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। श्रद्धा जी के साथ उनके पति प्रशान्त जैन से मिलना अतिरिक्त उपलब्धि रही प्रशान्तजी भी कम्प्यूटर एनालिस्ट हैं जो किसी बहुराष्ट्रीय कम्पनी में कार्यरत हैं। प्रशान्तजी का सेन्स ऑफ ह्यूमर इतना लाजबाब था कि हम तीन-चार घंटे लगातार हंस-हंस कर लोट-पोट होते रहे। हर एक बात पर उनके ‘‘वन लाइनर कमेण्ट’’ हंसी-ठहाके का वातावरण तैयार कर देते थे। इसके अलावा मैनपुरी के ही एक अन्य कम्प्यूटर एनालिस्ट श्री विक्रम और उनकी पत्नी अम्बिका से मिलना और उनके साथ लिटिल इण्डिया, फेयरर पार्क घूमना अविस्मरणीय रहा।
क्रमश:

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