साँसों में लोबान जलाना……..

काफी दिनों बाद इधर ब्लॉग पर लिखने की भूख बढ़ गयी . दिल नहीं माना और फिर से लिखना शुरू किया……. व्यस्तता के बाद ब्लॉग पर लिखने का क्रम जोड़ना वाकई सुखद रहा. इधर कल बारिश हो रही थी….ऐसे शानदार मौसम में मैंने एक ग़ज़ल लिखी…… या यूँ कहिये बस लिख गयी. अपने दोस्त शायर अकील नोमानी से कुछ ज़ुरूरी इस्लाह कराने के बाद ग़ज़ल आप की नज़र कर रहा हूँ ……….गौर फरमाएं…………..!

साँसों में लोबान जलाना आखिर क्यों !
पल पल तेरी याद का आना आखिर क्यों !!

जिसको देखो वो मशरूफ है अपने में,
रिश्तों का फिर ताना बाना आखिर क्यों !!

एक से खांचे सांचे में सब ढलते है,
फिर ये मज़हब-जाति-घराना आखिर क्यों !!

एक खता, यानी चाहत थी जीने की
पूरी उम्र का ये जुर्माना आखिर क्यों !!

मसअले उसके शम्सो -कमर के होते हैं,
मेरी मशक्कत आबो दाना आखिर क्यों !!

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