संजीदा शायरी के दस्तखत- नवाज़ देवबंदी !

nawazऑफिस बैठा हुआ कुछ ज़ुरूरी कम निपटा रहा था…..अचानक मोबाईल बजा……उठाया- हेलो किया तो उधर से आवाज़ आई……आदाब कैसे हैं जनाब…….मैंने भी आदाब क़ुबूल कर उसी सम्मान के साथ आदाब किया…..आवाज़ जानी पहचानी लगी मगर मोबाईल पर अनजाना नंबर डिस्प्ले हुआ था सो इंतज़ार किया कि उधर वाले साहब अपना परिचय दें तो आगे बात बढाऊँ….बहरहाल यह स्थिति तुरंत ही साफ़ भी हो गयी………उधर से आवाज़ आयी जनाब नवाज़ देवबंदी बोल रहा हूँ…….! मैंने तुरंत प्रति प्रश्न किया कि नंबर तो अनजाना लग रहा है……उन्होंने बताया कि वे आज गोरखपुर में ही हैं……….यहाँ उनका मोबाईल काम नहीं कर रहा है सो वे अपने किसी मित्र के फोन से बात कर रहे हैं ……! बात आगे बढ़ाते हुए बोले मैं मगहर आया हुआ था……….अखिल भारतीय मुशायरा में पढने के लिए……रास्ता यहीं से जाता है सो ट्रेन से उतर लिया फिलहाल गोरखपुर में हूँ शाम को मगहर जाऊंगा……..अगर फुर्सत हो तो मुलाक़ात हो जाए…….! नवाज़ साहब की यही साफगोई मुझे बहुत पसंद है……….मैंने तुरंत कहा घर आ जाईये…………..बिना किसी औपचारिकता के बाद शाम 7 बजे वे अपने एक स्थानीय शायर दोस्त के साथ तशरीफ़ ले आये…………….मैं तो उनका बेसब्री से इन्तिज़ार कर ही रहा था………एक मुद्दत के बाद उनसे मुलाक़ात हो रही थी……….! उन्हें जल्दी ही जाना था……चाय लेने के दौरान मेरी पत्नी ने उनसे कुछ शेर पढ़ने को कहा तो नवाज़ साहब शुरू हो गए………..एक बार जब वे शुरू हो गए तो माहौल ऐसा परवान चढ़ा कि अगले दो घंटे कब गुज़र गए पता ही नहीं चला…………एक के बाद एक बेहतरीन शेर ! …………. जैसे सारा खज़ाना नवाज़ साहब हम पर लुटाने को तैयार थे……….श्रोता के नाम पर मैं, मेरी पत्नी और रेलवे में अधिकारी मगर शायर के रूप में पहचान बना चुके बी. आर. बिप्लवी साहब थे. उनके हर एक शेर पर हम तीनों वाह- वाह- शुभान अल्लाह- क्या बात है- जिंदाबाद- मुक़र्रर जैसे जुमलों को दोहराते रहे……..!
उनकी एक ग़ज़ल जो जगजीत सिंह साहब ने भी गयी है मुझे काफी पसंद है, मुलाहिजा फरमाएं-
तेरे आने की जब खबर महके,
तेरी ख़ुश्बू से सारा घर महके !
रात भर सोचता रहा तुझ को,
जेहनो दिल मेरे रात भर महके !

 

उनकी एक ग़ज़ल आदरणीय लता जी ने भी गयी है……….क्या ही खूबसूरत ग़ज़ल है यह…..!
कुछ इस तरह से उसे प्यार करना पड़ता है,
कि उसके प्यार से इन्कार करना पड़ता है !
कभी कभी तो वो इतना करीब होता है,
कि अपने आपको दीवार करना पड़ता है !
खुदा ने उसको अता की है वो मसीहाई,
कि खुद को जान के बीमार करना पड़ता है !

उन्ही की जानिब से कुछ गजलों के चंद शेर और जो मेरे जेहन में अब तक बसे हुए हैं ……….
वो रुलाकर हँस न पाया देर तक,
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक !
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए,
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक !
गुनगुनाता जा रहा था इक फकीर,
धूप रहती है न साया देर तक !

कुछ और पेशकस…….
मेरी कमजोरियों पर जब कोई तन्कीद करता है,
वो दुश्मन क्यों न हो उससे मुहब्बत और बढती है!

एक और खूबसूरत ग़ज़ल का टुकड़ा पेश है…….
यह जला दिया वो बुझा दिया, ये काम तो है किसी और का,
न हवा के कोई खिलाफ है न हवा किसी के खिलाफ है !
वो है बेवफा तो वफ़ा करो, जो असर न हो तो दुआ करो,
जिसे चाहो उसको बुरा कहो ये तो दोस्ती के खिलाफ है !
वो जो मेरे गम में शरीक था जिसे मेरा गम भी अज़ीज़ था,
मैं जो खुश हुआ तो पता चला वो मेरी ख़ुशी के खिलाफ है !

 

नवाज़ साहब इस समय उर्दू मुशायरे के जाने माने नाम हैं………..संजीदा शायरी के वे दस्तखत हैं……. अपनी मशरूफियत में भी वे अपनों को नहीं भूलते………सादगी….संजीदगी…..शेर कहने का सलीका नवाज़ साहब की ऐसी अदा है जिसपे हम दिलो जान से फ़िदा हैं….शुक्रिया नवाज़ साहब !

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