संजीदा शायरी के दस्तखत- नवाज़ देवबंदी !
उनकी एक ग़ज़ल जो जगजीत सिंह साहब ने भी गयी है मुझे काफी पसंद है, मुलाहिजा फरमाएं-
तेरे आने की जब खबर महके,
तेरी ख़ुश्बू से सारा घर महके !
रात भर सोचता रहा तुझ को,
जेहनो दिल मेरे रात भर महके !
कुछ इस तरह से उसे प्यार करना पड़ता है,
कि उसके प्यार से इन्कार करना पड़ता है !
कभी कभी तो वो इतना करीब होता है,
कि अपने आपको दीवार करना पड़ता है !
खुदा ने उसको अता की है वो मसीहाई,
कि खुद को जान के बीमार करना पड़ता है !
उन्ही की जानिब से कुछ गजलों के चंद शेर और जो मेरे जेहन में अब तक बसे हुए हैं ……….
वो रुलाकर हँस न पाया देर तक,
जब मैं रोकर मुस्कुराया देर तक !
भूखे बच्चों की तसल्ली के लिए,
माँ ने फिर पानी पकाया देर तक !
गुनगुनाता जा रहा था इक फकीर,
धूप रहती है न साया देर तक !
कुछ और पेशकस…….
मेरी कमजोरियों पर जब कोई तन्कीद करता है,
वो दुश्मन क्यों न हो उससे मुहब्बत और बढती है!
एक और खूबसूरत ग़ज़ल का टुकड़ा पेश है…….
यह जला दिया वो बुझा दिया, ये काम तो है किसी और का,
न हवा के कोई खिलाफ है न हवा किसी के खिलाफ है !
वो है बेवफा तो वफ़ा करो, जो असर न हो तो दुआ करो,
जिसे चाहो उसको बुरा कहो ये तो दोस्ती के खिलाफ है !
वो जो मेरे गम में शरीक था जिसे मेरा गम भी अज़ीज़ था,
मैं जो खुश हुआ तो पता चला वो मेरी ख़ुशी के खिलाफ है !
नवाज़ साहब इस समय उर्दू मुशायरे के जाने माने नाम हैं………..संजीदा शायरी के वे दस्तखत हैं……. अपनी मशरूफियत में भी वे अपनों को नहीं भूलते………सादगी….संजीदगी…..शेर कहने का सलीका नवाज़ साहब की ऐसी अदा है जिसपे हम दिलो जान से फ़िदा हैं….शुक्रिया नवाज़ साहब !