वृंदा और कंचन का विलाप कानों में गूंजता है…….!

मंगलवार दिनांक 6 अप्रैल 2010 का दिन भारत के इतिहास में हिंसात्मक नक्सली गतिविधियों के लिए जाना जायेगा….इस दिन नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ में दंतेवाडा जिले में 76 जवानों को मौत के घाट उतार दिया…….यह घटना तब घटी जब केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के जवानों को ले जा रही एक बस को बारूदी सुरंग से उड़ा दिया गया ……इस बस में 76 जवान सवार थे. मुकरना के जंगल में घटी इस घटना ने देश को हिला कर रख दिया. इस हादसे में शहीद हुए जवानों में 42 जवान उत्तर प्रदेश के थे………और इन जवानों में भी 4 गोरखपुर के थे…….! बुधवार की रात जब इन जवानों के शव गोरखपुर लाये गए तो दिल हिला देने वाले दृश्य देखने को मिले ……..दो जवानों की अंत्येष्टि में मैं भी शामिल हुआ, जवान थे-अवधेश यादव और प्रवीन राय……! 28 वर्षीय प्रवीण अपने तीन भाईयों में सबसे बड़े थे…….बचपन में ही माँ का देहांत हो जाने के बाद उन्होंने अपने पिता के साथ अपने दो छोटे भाइयों को सहारा दिया ……पिता के साथ कन्धा मिलाते हुए जीवन का सफ़र तय किया था…….2002 में वे सी. आर. पी. एफ. में भर्ती हो गए…….2004 में शादी की ……..उनकी पत्नी वृंदा बस अगले महीने ही माँ बनने वाली थीं………..उससे पहले ही यह दुखद घटना घट गयी……..! अल सुबह 2 बजे जब मैं शहीद के पार्थिव शरीर को लेकर बघराई गाँव पहुंचा तो ग्रामीणों का जमघट वहां था……….सन्नाटा चारों तरफ पसरा हुआ था……..जैसे सी. आर. पी. एफ. की गाड़ी से तिरंगे में लिपटा शव उतारा गया तो लगा कि जवान यह पूरे गाँव का लाडला था……….हर और विलाप की आवाजें ……..पत्नी और छोटे भाई का हाल रो-रो के जो हो रहा था …..मैं चाह के भी बयां नहीं कर सकता……पिता तो जैसे घटना पर विश्वास ही नहीं कर पा रहे थे……..चुप्पी सी लगी हुयी थी उनके होठों पर. यही हाल दूसरे शहीद अवधेश के घर का था. 25 साल सेवा कर चुके 45 वर्षीय अवधेश यादव ने अपने बड़े पुत्र की शादी अगले जून माह में तय कर दी थी………….तारीख भी मुकर्रर हो गयी थी…….11 जून…………मगर शायद नियति को कुछ और ही मंज़ूर था उससे पहले यह घटना घट गयी . उनके दोनों बेटों और चौदह वर्षीय बेटी कंचन का विलाप देखकर किसी की आँखें नम हो सकती थीं………….सरयू के किनारे मुक्तिधाम घाट पर इन दोनों जवानों को सलामी के बीच अंत्येष्टि करते वक्त जो मंज़र था वो अब तक मेरी आँखों से उतरा नहीं है………… रात भर जगे होने के बावजूद……… उदास -टूटे हुए मन से पोस्ट लिखने बैठ गया………बार-बार प्रवीन की पत्नी वृंदा का विलाप और अवधेश की चौदह वर्षीय बेटी कंचन का करुण क्रंदन कानों में गूंजता रहा …………..ऐसे में मन में बारम्बार यही प्रश्न कौंधता रहा कि आंतरिक अशांति से जूझते देश को इन दुखद स्थितियों से कैसे निजात मिलेगी ?

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