वीनस भाई और उनके बेहतरीन प्रयास के नाम ग़ज़ल……..!

बीते दिनों ब्लॉग पर वीनस केसरी ने “आइये एक शेर कहें” नमक बेहतरीन श्रृंखला शुरू की ……यह अलग बात कि यह श्रृंखला उनकी व्यक्तिगत वजहों के कारण बीच में ही गतिरोध का शिकार हो गयी, मैंने वीनस से इस बावत बात भी की, दरख्वास्त भी की कि इस शानदार श्रृंखला को यूँ ख़त्म न करें……..कई ग़ज़लकारों के लिए उनका ब्लॉग संजीवनी सिद्ध हो सकता था , मगर…………..! खैर तिलक राज कपूर साहब के माध्यम से जिस अंदाज़ में शेरों की बुनावट पर स्वस्थ टिप्पणियां आ रही थीं, वे अनपैरेलल थीं…..! चलिए वीनस भाई की मजबूरियों का सम्मान करते हैं. एक नयी ग़ज़ल इधर मुझसे लिख गयी सोच इस ग़ज़ल को क्यूँ न वीनस भाई और उनके बेहतरीन प्रयास के नाम कर दूं……..! तो हाज़िर है वीनस भाई के नाम यह ग़ज़ल…….मुलाहिजा फरमाएं……!

हम तुम हैं आधी रात है और माह-ए-नीम है,
क्या इसके बाद भी कोई मंज़र अजीम है !!

वो खुश कि उसके हिस्से में आया है सारा बाग़,
मैं खुश कि मिरे हिस्से में बाद-ए- नसीम है !!

लहरें वसूलयाबी को आती हैं बार-बार,
साहिल है कर्ज़दार समंदर मुनीम है !!

क्या वज्ह पेश आई अधूरा है जो सफ़र,
रास्ता ही थक गया है कि राही मुकीम है !!

जब जब हुआ फसाद तो हर एक पारसा,
साबित हुआ कि चाल- चलन से यतीम है !!

फेहरिस्त में तो नाम बहुत दर्ज हैं मगर,
जो गर्दिशों में साथ रहे वो नदीम है !!

मज़हब का जो अलम लिए फिरते हैं आजकल,
उनकी नज़र में राम न दिल में रहीम है !!

साया है कम तो फ़िक्र नहीं क्यूंकि वो शजर,
ऊँचाई की हवस के लिए मुस्तकीम है !!

*माह ए नीम = आधा चाँद, नदीम = दोस्त, मुस्तकीम = सीधा खड़ा हुआ

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