यूँ तो हर पल इन्हें भिगोना ठीक नहीं

यूँ तो हर पल इन्हें भिगोना ठीक नहीं
फिर भी आँख का बंजर होना ठीक नहीं

दिल जो इजाज“त दे तो हाथ मिलाओ तुम
बेमतलब के रिश्ते ढोना ठीक नहीं

हर आँसू की अपनी कीमत होती है
छोटी-छोटी बात पे रोना ठीक नहीं

बाशिंदे इस बस्ती के सब भोले हैं
इन पर कोई जादू टोना ठीक नहीं

एहसासात में भीगी कोई नज़्म लिखो
बेमतलब अल्फाज़ पिरोना ठीक नहीं

बेहतर कल की आस में जीने की ख़ातिर
अच्छे ख़ासे आज को खोना ठीक नहीं

मुख़्तारी तो ऐसे भी दिख जाती है
आँगन में बंदूकें बोना ठीक नहीं

दिये के जैसी रोशन तेरी आँखें हैं
फ’स्ले-आब को इनमें बोना ठीक नहीं

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