मेहदी साहब – अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले…!

बात उन दिनों की है जब मैं ग्रेजुएसन फर्स्ट इयर में था. ग़ज़ल सुनने का नया नया शौक लगा था. बिना किसी दुराग्रह के सबकी ग़ज़लें सुन लिया करते थे. ऐसे ही एक रोज़ हॉस्टल के किसी मित्र के कमरे में बैठे हुए अचानक एक नयी ग़ज़ल सुनने को मिली. ” मैं होश में था तो फिर उसपे मर गया कैसे …..”यही बोल थे उस ग़ज़ल के जिसको सुनकर गायक की आवाज़ ने मुझे फनकार का नाम जानने को बेचैन कर दिया , कैसेट का कवर उठा कर पढ़ा तो पता चला कि ग़ज़ल मेहदी हसन ने गायी है. बस यहीं से मेहदी साहब को सुनने की ऐसी ललक पैदा हुयी जो हर दिन बढती ही गयी. इसके बाद तो हद यह थी कि सिर्फ मेहदी साहब को सुनना रह गया. दीवानगी का आलम यह रहा कि उसके बाद से अब तक जब भी मेहदी साहब का कोई गीत-ग़ज़ल-ठुमरी- क्लासिकल तराना मिला तुरंत अपने म्यूजिक लाइब्रेरी का हिस्सा बना लिया. लगभग बीस एक बरस गुज़र गए उनकी सोहबत में. कभी ” मैं ख्याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और है ” को गुनगुनाया तो कभी ” रफ्ता रफ्ता वो मिरी हस्ती के सामा हो गए” को. रोमांस किया तो उनकी गायी ग़ज़ल ” दुनिया किसी के प्यार में ज़न्नत से कम नहीं” नेपथ्य में गूंजती सी प्रतीत हुयी. कभी मुश्किल दौर आया तो दिल को ” एक सितम और मेरी जाँ अभी जाँ बाकी है” याद आया. इनके अलावा जब भी वक्त मिला तो” शोला था जल बुझा हूँ…”, ” रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ….”, “दायम पड़ा हुआ है…. “, ” प्यार भरे दो शर्मीले नैन” जैसी ग़ज़लों को सुनते रहे और हैरत करते रहे कि इस ज़मीं पर रहती दुनिया में कोई इतने करीने से किसी कलाम को कोई अपनी आवाज़ दे सकता है.
 
ऐसे में लम्बे अरसे से बीमार चल रहेशहंशाह ए ग़ज़ल मेंहदी हसन के इंतकाल की खबर संगीत की दुनिया के लिए बहुत ख़राब खबर है.85 वर्षीयमेंहदी हसनफेफड़ों में संक्रमण से जूझ रहे हसन को गत 30 मई को कराची के आगा खान अस्पताल के आईसीयू में भर्ती कराया गया था. उनके ख़राब स्वास्थ्य को लेकर लगातार ख़बरें आ ही रहीं थीं.तीन दिन पहले हसन के कई अंगों में संक्रमण हो गया था. हालत से जूझते हुए 13 जूनको दोपहर में उन्होंने अंतिम सांस ली.

‘रंजिशें सही’, ‘जिंदगी में तो सभी प्यार किया करते हैं‘, ‘पत्ता पत्ता बूटा बूटा’ जैसी बेहतरीन गजलों को अपनी बेहतरीन आवाज से नवाजने वाले हसन का जन्म राजस्थान के लूना में 18 जुलाई 1927 को हुआ था. हसन को संगीत विरासत में मिला था. वह कलावंत घराने से ताल्लुक रखते थे, वे इस घराने के 16वीं पीढ़ी के फनकार थे. उन्होंने अपने पिता आजम खान और चाचा उस्ताद इस्माइल खान से संगीत की तालीम ली जो ध्रुपद गायक थे. हसन ने बेहद कम उम्र से ही गाना शुरू कर दिया और आठ बरस की उम्र में पहला कार्यक्रम पेश किया. भारत के विभाजन के बाद वह पाकिस्तान चले गए थे. पाकिस्तान में शुरुआती दिनों में उन्होंने

मोटरमिस्त्री जैसा काम भी किया मगर इस दौरान भी संगीत के प्रति उनका जुनून बरकरार रहा. उन्हें 1957 में पहली बार रेडियो पाकिस्तान के लिए गाने का मौका मिला. उन्होंने शुरुआत ठुमरी गायक के रूप में की क्योंकि उस दौर में गजल गायन में उस्ताद बरकत अली खान, बेगम अख्तर और मुख्तार बेगम का नाम चलता था.धीरे-धीरे वह गजल की ओर मुड़े.इसके बाद मेहदी हसन ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. इसके बाद वे फिल्मी गीतों की दुनिया में व गजलों के निर्विवाद बादशाह के रूप में स्थापित हो गए.

यह उनके फन की काबिलियत थी कि उन्हें शहंशाह ए गजल कहा जाने लगा. गंभीर रूप से बीमार होने के बाद उन्होंने 80 के दशक के आखिर में गाना छोड़ दिया.

1957 से 1999 तक संगीत की दुनिया में लगातार सक्रिय रहे मेहदी हसन ने गले के कैंसर के बाद पिछले 12 सालों से गाना लगभग छोड़ दिया था. उनकी अंतिम रिकॉर्डिग 2010 में सरहदें नाम से आई थी. अहमद फ़राज़, फैज़, परवीन शाकिर, ग़ालिब की ग़ज़लों को उन्होंने इस तरह गया कि सुनते हुए यही महसूस होता है कि जैसे ग़ज़लों की रूह पर जमा परतें उखाड़ रही हों. हर लफ्ज़ को उनकी गायकी से नया उफक मिलता था. श्रोता उन्हें सुनते वक्त कहीं खो जाता था. मेहदी हसन वह शख्स थे जिन्हें हिंदुस्तान व पाकिस्तान में बराबर का सम्मान मिलता था. इन्होंने अपनी गायिकी से दोनों देशों को जोड़े रखा था. उनका निधन गजल गायिकी के उस स्तम्भ का गिरने जैसा है जो शायद कभी पुनर्स्थापित किया जा सके.

 
मैं नहीं समझ पा रहा हूँ कि इस अज़ीम गायक की शान में क्या लिखूं…. बस यही कह सकता हूँ कि ”अब के बिछडे़ तो शायद ख्वाबों में मिले/जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले/ ढूंढ़ उजडे़ हुए लोगों में वफा के मोती/ये खजाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिले ..” !
 
आज चंद ग़ज़लें मेरे जेहन में आ रहीं हैं जिन्हें बीते दो दशकों में मैंने अनगिनत बार सुना होगा. ये वो ग़ज़लें हैं जिनमें मेहदी साहब की आवाज़ का उतार चढ़ाव और उनकी लफ्ज़ आदायगी का जादू मेरे सर चढ़ कर बोलता रहा है उन्हें याद कर रहा हूँ—–
  • गुलों में रंग भरे बादे नौ बहार चले
  • आये कुछ अब्र कुछ शराब आये
  • पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है
  • तुम्हारे साथ भी तनहा हूँ
  • मुहब्बत करने वाले
  • रफ्ता रफ्ता
  • भूली बिसरी चंद उम्मीदें
  • अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिले
  • मुझे तुम नज़र से गिरा तो रहे हो
  • हर दर्द को ए जाँ मैं सीने में सामा लूं
  • रोशन जमाल ए यार से हैं
  • भूली बिसरी चाँद उम्मीदें
  • गुंचा ए शौक लगा है
  • रंजिश ही सही
  • चरागे तूर जलाओ बड़ा अँधेरा है
  • प्यार भरे दो शर्मीले नैन
  • दिल ए नादान तुझे हुआ क्या है
  • वो दिल नवाज़ है
  • आज वो मुस्कुरा दिया
  • जब आती है तेरी याद
  • मैं नज़र से पी रहा हूँ
  • ये मोजिज़ा भी मुहब्बत कभी
  • दिल की बात लबों पे लाकर
  • दुनिया किसी के प्यार में जन्नत से कम नहीं
  • दायम पड़ा हुआ हूँ
  • मुब्हम बात पहेली जैसी
  • एक बस तू ही नहीं मुझसे खफा हो बैठा
  • एक सितम और मेरी जाँ अभी जाँ बाकी है
  • शोला था जल बुझा हूँ
  • ज़िन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं
  • उसने जब मेरी तरफ प्यार से देखा होगा
  • किया है प्यार जिसे हमने ज़िन्दगी की तरह
  • मैं ख्याल हूँ किसी और का
  • राजस्थानी लोक गीत पधारो म्हारे देश
  • जब उस ज़ुल्फ़ की बात चली
  • तूने ये फूल जो जुल्फों में लगा रखा है

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