महफूज के बहाने खाकसार की इज्ज़त – हौसला अफज़ाई का शुक्रिया…!

3भाई महफूज ने अपने ब्लॉग पर मेरे बारे में एक पोस्ट लिख डाली…….उन्वान था “जज़्बा ग़र दिल में हो तो हर मुश्किल आसाँ हो जाती है… मिलिए हिंदुस्तान के एक उभरते हुए ग़ज़लकार से “। इस पोस्ट के माध्यम से उन्होंने बहुत कुछ लिख डाला मेरे बारे में………महफूज भाई दिल से शुक्रिया………वैसे एक बात और, इस पोस्ट को पढ़ने के बाद एहसास हुआ कि लेखक लोग भी कम झूठे नहीं होते…….महफूज साहब ने जो कुछ लिखा वो तो अतिश्योक्ति में लगा लिपटा था ही…..कमेन्ट में भी खूब अतिशयोक्तियाँ रहीं……. ! खैर आप सब का प्यार-स्नेह-आशीर्वाद सर माथे……! महफूज साहब की पोस्ट और आपकी टिप्पणियों ने मेरी जिम्मेदारियां और दुश्वारियां दोनों बढ़ा दी हैं……..! किन्ही दो चार का नाम लूँगा तो यह मेरी नासमझी होगी सो सभी कमेन्ट करने वाले विद्जनों को हार्दिक धन्यवाद ……..कि आपने अपने कीमती वक्त में से समय निकाल कर इस खाकसार की इज्ज़त – हौसला अफजाई की. शौक और कारोबारी जिम्मेदारियों के बीच चलने का रास्ता अख्तियार किया है…..सो इन्ही दुश्वारियों के बीच जो कुछ लिख जाता है, आपको परोसता रहता हूँ……..बिना ये जाने कि इसका स्वाद कैसा होगा……! इसी बीच एक नयी ताज़ा ग़ज़ल लिख गयी जिसे आप सभी को हाज़िर कर रहा हूँ…….!
ज़मीं पर इस कदर पहरे हुए हैं !
परिंदे अर्श पर ठहरे हुए हैं !!

बस इस धुन में कि गहरा हो तआल्लुक,
हमारे फासले गहरे हुए हैं !!

नज़र आते नहीं अब रास्ते भी,
घने कुहरे में सब ठहरे हुए !!

 

करें इन्साफ की उम्मीद किससे,
यहाँ मुंसिफ सभी बहरे हुए हैं !!

वही इक सब्ज़ मंज़र है कि जब से,
नज़र पे काई के पहरे हुए हैं !!

चलीं हैं गोलियां सरहद पे जब से,
कलेजे माँओं के सिहरे हुए हैं !!

खुला बाद-ए- शहादत ये कि हम तो,
फ़क़त उस जीत में मोहरे हुए हैं !!

(ग़ज़ल की बारीकियां जानने वालों से माफ़ी चाहूँगा कि आखिरी शेर में त्रुटि होने के बाद भी आपको पढ़वाने का लोभ नहीं छोड़ पा रहा हूँ….)

Leave a Reply