महफूज के बहाने खाकसार की इज्ज़त – हौसला अफज़ाई का शुक्रिया…!

ज़मीं पर इस कदर पहरे हुए हैं !
परिंदे अर्श पर ठहरे हुए हैं !!
परिंदे अर्श पर ठहरे हुए हैं !!
बस इस धुन में कि गहरा हो तआल्लुक,
हमारे फासले गहरे हुए हैं !!
नज़र आते नहीं अब रास्ते भी,
घने कुहरे में सब ठहरे हुए !!
करें इन्साफ की उम्मीद किससे,
यहाँ मुंसिफ सभी बहरे हुए हैं !!
यहाँ मुंसिफ सभी बहरे हुए हैं !!
वही इक सब्ज़ मंज़र है कि जब से,
नज़र पे काई के पहरे हुए हैं !!
चलीं हैं गोलियां सरहद पे जब से,
कलेजे माँओं के सिहरे हुए हैं !!
खुला बाद-ए- शहादत ये कि हम तो,
फ़क़त उस जीत में मोहरे हुए हैं !!
(ग़ज़ल की बारीकियां जानने वालों से माफ़ी चाहूँगा कि आखिरी शेर में त्रुटि होने के बाद भी आपको पढ़वाने का लोभ नहीं छोड़ पा रहा हूँ….)