बस तेरा नाम ही मुकम्मल है………….

gulzaar-1शनिवार शाम से शुरू हुए ओसियान सिने फ़ैन फ़िल्म समारोह की शुरुआत “गुलज़ार साहब को सम्मानित किये जाने के साथ “होने की खबर बहुत सुखद लगी…….इस बरस की शुरुआत में भी तब बहुत अच्छा लगा था जब ऑस्कर में उनके “जयहो” ने हम भारतीयों

को बरसों की साध पूरी होने का अवसर दिया था. दिल्ली में आयोजित ओसियान सिनेफ़ैन फ़िल्म समारोह मेंगुलज़ार साहब को सम्मानित किया जाना खुद समारोह की इज्ज़त बढाता है. गुलज़ार साहब पर इतना लिखा गयाहै कि जब भी कुछ लिखने को जी चाहता है तो लगता है कि यह सब तो लिखा जा चुका है. क्या लिखूं उनके ऊपर…. “मोरा गोरा अंग लई ले ” से गीतों को लिखने की शुरुआत करने वाले गुलज़ार अब तक “चड्ढी पहन कर फूल खिला है” जैसे मनभावन बाल गीत से लेकर ” कजरारे- कजरारे” तक का लम्बा सफ़र तय कर चुके हैं। गीतकार-फिल्मकार-डायेरेक्टर- साहित्यकार और भी न जाने क्या क्या……….गुलज़ार साहब को हमारा इस अवसर पर फिर से एक बारसलाम…..सच तो यह है कि हम हमेशा उन्हें सलाम करने के लिए तैयार रहते हैं….बस कोई बहाना चाहिए।

इस मौके पर बिना उनकी नज़्म के बात अधूरी रहेगी सो आईये उनकी नज़्म के सहारे उनको सलाम भेजते हैं……

 

नज़्म उलझी हुई है सीने में

 

मिसरे अटके हुए हैं होठों पर

 

उड़ते -फिरते हैं तितलियों की तरह

 

लफ्ज़ काग़ज़ पे बैठते ही नही

 

कब से बैठा हुआ हूँ मैं जनम

 

सादे काग़ज़ पे लिखके नाम तेरा

बस तेरा नाम ही मुकम्मल है

 

इससे बेहतर भी नज़्म क्या होगी—————–?

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