फ़साहत अनवर – एक शायर

सिविल सेवा में चयन के बाद मुझे ढेरों शुभ कामनाए मिली। कई संस्थाओं ने सुंन्दर ग्रीटिंग भेजे तो कई लोग व्यक्तिगत रूप से मिले और खुशी का इज़हार किया । लगभग दो माह तक ये सिलसिला चला अब जबकि ये सिलसिला थमा तो मैं सोचता हूँ की इनमे से कुछ शुभकामनाये महज रस्मी थी तो कुछ सीधे दिल से। ऐसे में जब मैं कल देर रात यह याद कर रहा था कि कौन सी शुभकामनाये दिल से थी तो ऐसे में एक नाम मुझे कौंधा …….. फ़साहत अनवर। फ़साहत भाई मैनपुरी के रहने वाले एक शायर हैं । गिफ्टेड शायर होने के बावजूद वे इतने दौलतमंद नही है कि वे ख़ुद को एक्सपोज कर पाते ( जैसा कि आज कल का चलन है ) धीमी गति के साथ वे अपनी शायरी को अंजाम दे रहे हैं। मेरी उनसे मुलाकात लगभग पन्द्रह baras पुराni है जब मैं मैनपुरी में दैनिक जागरण अखवार में सिटी रिपोर्टर था और उनके प्रेस नोट मुझे मिला करते थे। यह प्रेस नोट न केवल किसी भी घटना पर त्वरित टिपण्णी के रूप में हुआ करते थे बल्कि मैनपुरी कि सामान्य समस्याओं के विषय में भी हुआ करते थे। सारे के सारे प्रेस नोट उनकी हैण्ड राईटिंग में हुआ करते थे और उनकी राईटिंग भी माशा अल्लाह काफी खूबसूरत हुआ करती थी ……….. उनकी प्रेस नोट पर वे एक साहित्यिक संस्था आइना-ऐ -अदब के सेक्रेटरी कि हैसियत से दीखते थे……..मुझे कई बार महसूस हुआ कि वे शायद इस संस्था के अकेले आलम बरदार थे……. अपनी रचनात्मकता को औपचारिक रूप देने के लिए ही वे शायद इस संस्था का नाम इस्तेमाल करते थे वरना सारे विचार उनके अपने व्यक्तिगत हुआ करते थे। अभी जब मैं मैनपुरी अपने घर गया तो उन्होंने मिलकर emअपनी शुभकामनाये दी साथ ही एक लिफाफा भी….लिफाफे के चिट्टी थी -चिट्टी में एक कविता थी…. कविता इस ब्लॉग पर फ़िर कभी पोस्ट करूंगा। फिलहाल मैं वापस आता हूँ फ़साहत भाई कि जानिब…….. वे एक स्कूल चलाते हैं मजबूरी है जीने के लिए शायरी काफी नही है ….काम भी ज़रूरी है। गैर मज़हबी होते हुए वे हिन्दी – उर्दू शायरी के बंटवारे को नही मानते उनकी ग़ज़लों में राम और रहमान को बराबर महत्त्व मिला है। उनका कोई भी किताब अभी तक प्रकाशित नही हुई है । मैनपुरी के एक प्रकाशक ने उनकी एक किताब अवश्य छापी है …….खुसबू नाम से…. ये किताब किसी नामी पुब्लिकाशन से प्रकाशित होती तो शायद इसे अच्छा रिस्पोंस मिलता…….मगर जाने दीजिये । ख़ुद फ़साहत बहूत खूबसूरत हैं बिल्कुल फूल जैसे ऐसे में उनकी शायरी खूबसूरत होना लाजिमी है । चलिए उनकी शायरी की बानगी देखिये

कही अजान तो कहीं शंख की सदाओं में,

हमें ख़बर है खुदा के कई ठिकाने हैं

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कोई बतलाये की अब जाके कहाँ हम डूबे

हमने सूखा हुआ हर संत समंदर देखा।

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कह दो न कोई isko कलेजे से लगाये

नफरत तो समंदर में डुबोने के लिए है।

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और भी शामिल है मेरे कत्ल में, मैं तुम्हारा नाम लेकर क्या करूंगा।

राम औ रहमान दोनों chahiye ,मैं अकेला राम लेकर क्या करूँगा

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तेरी आखें हसीं झीले है,मेरी आंखों में प्यास रहती है

सोचना है की आज रिश्तों में , क्यों बहुत कम मिठास रहती है।

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चाँद पर जाने की दावत बाद में , पहले हर भूखे को खाना चाहिए.

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