तीजन बाई …..

बीते मंगलवार को तीजन बाई का प्रोग्राम देखने का अवसर मिला.यूँ तो तीजन जी को टी वी पर कई बार देखा था मगर मंच से उनका प्रोग्राम देखने का अवसर पहली बार मिल रहा था. अपने नियत समय से वे लगभग एक घंटे देर से पहुँची.मगर मंच पर उनके आते ही वातावरण बिल्कुल बदल गया. अपनी मंडली के साथ जैसे ही वे मंच पर पहुँची हॉल में तालियाँ बज उठी. उनके साथ संगीत मंडली थी और पाँच संगीतकार जो तीजन जी का साथ दे रहे थे वे भी मंजीरा, तबला,ढोलक,बैंजो, हर्मोनिअम जैसे परम्परावादी संगीत यंत्रों के साथ मौजूद थे. तीजन जी ने महाभारत के उस प्रसंग की प्रस्तुति की जिसमे कि ” दुर्योधन- भीम के गदा युद्ध ” होता है और किस तरह भीम दुर्योधन का वध कर के महाभारत के 18 दिन के विकराल युद्ध को समाप्त करते हैं. सचमुच मज़ा आ गया. तीजन जी की परफोर्मेंस बहुत ही एनेर्जेटिक थी. पांडवानी (पांडवों की वाणी) की इस गायिका ने छत्तीसगढ़ी जुबान में महाभारत की प्रस्तुति कर पूरे विश्व (इंग्लैंड,जर्मनी, पेरिस,फ्रांस …..) इस लोक कला का परचम फहराया है.दुनिया के बहुत से देशों में उनके प्रोग्राम होते ही रहते हैं. अगर हम पांडवानी शैली का तकनीकी पक्ष देखें तो इस कला को दो तरीके से प्रस्तुत किया जाता है -एक कापालिक शैली और दूसरी वेदमती. तीजन जी कापालिक शैली की गायिका हैं.उन्हें 1988 में पदम् श्री,1995 में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड और 2003 में पदम् भूषण से नवाजा गया है. 1956 में भिलाई के पास एक छोटे से गांवमें जन्मी तीजन जी को पांडवानी शैली की शिक्षा अपने नाना ब्रिज लाल से मिली. बाद में महान रंगकर्मी हबीब तनवीर ने उन्हें भरपूर मौके देकर उनको स्टार बना दिया. बाद में उन्हें दुनिया में अपनी कला दिखने का अवसर मिला. अब तो वे डॉक्टर भी हैं……..ये अलग बात है कि वे ख़ुद को मंच से निरक्षर बताने में कोई संकोच नही करती. पांडवानी की इस महान गायिका को लोक कलाओं के इतिहास में सदैव अत्यन्त सम्मान के साथ देखा जाएगा.

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