कुछ नज्में……डायरी से !

एक अरसे बाद कल अपनी डायरी लेकर बैठ गया……….ऐसा लगा कि जैसे पुराने कुछ फूल फिर से नए रंगों में खिल गए………..चंद नज्में जो कुछेक बरस पहले लिखी थीं ……..फिर से रोशन सी हो गयीं……..जी चाहा कि इन कुछ नज्मों को क्यों न आप सबके हवाले कर दूं ……….ग़ज़लों को तो अपने ब्लॉग पर लिखता ही रहता हूँ, कुछ नज्में आपको नज्र करने की हिमाकत करने का जी चाह है………सो खुद को रोक नहीं पा रहा हूँ……मुलाहिजा फरमाएं…….!

1-याद

बस
एक लम्हा
गुज़ारा था तेरे साथ,
एक
भरी पूरी उम्र
कट गयी
उस लम्हे की
यादों के सहारे !
काश !
एक उम्र
तेरे साथ
गुजरने पाती………………!
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2-गिरहें ……!
तुम्हारे
जिस्म में
वो कौन सा
जादू छुपा है कि
जब भी तुम्हें
एक नज़र देखता
हूँ……..
मेरी निगाह में
यक-ब- यक
हजारों
रेशमी गिरहें
सी लग जाती हैं…………!
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3-रात
वक्त के मेले में
जब भी रात
घूमने निकलती है
तो न जाने क्यूँ
वो अपने कुछ बच्चों को
जिन्हें “लम्हे” कहते हैं,
छोड़ आती है………!
ये गुमशुदा लम्हे
जुगनू की शक्ल अख्तियार करके
बेसबब
अपनी माँ की तलाश में
भटकते रहते हैं………..,
मचलते रहते हैं…………!
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4-अमानत
परत दर परत
तह ब तह
जिंदगी जिंदगी
…….यही एक अमानत
बख्शी है मेरे नाम
मेरे खुदा ने……..!
इसी में से
ये जिंदगी
ये उम्र
तुम्हारे नाम कर दी है…….!
पर सुनो
ये तो सिर्फ पेशगी है
तुम कहो तो
ये सारी
अमानत
तुम्हारे नाम कर दूं…..!

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