किस किस तरह से दोस्तो बीती है जिन्दगी
किस किस तरह से दोस्तो बीती है जिन्दगी
दरिया सी चढ़ के, बाढ़ सी उतरी है जिन्दगी
तुम पास थे तो चाँदनी अपने करीब थी
तुम दूर हो तो धूप में तपती है जिन्दगी
यक मुश्त जिन्दगी है तो है तेरे वास्ते
वैसे तो लाख हिस्सों में बिखरी है जिन्दगी
शिकवे शिकायतें तो बहुत तुझसे हैं मगर
मेरी नजर से तू नहीं उतरी है जिन्दगी
दिन के तमाम सिलसिले दिन से जुड़े मगर
हर रात तेरे साथ से संवरी है जिन्दगी
लज्ज़त है, डूबने में मगर मुश्किलें भी हैं
एक ऐसी ख़्वाहिशात की नद्दी है जिन्दगी
देखो अगर तो ऐश का सामान है मगर
सोचो तो सिर्फ दर्द की गठरी है जिन्दगी