अब्बा के बाद घर की बदली हुई हवा है

अब्बा के बाद घर की बदली हुई हवा है
सहमा हुआ है आंगन सिमटी हुई हवा है

अब देखना है किसको मिलती है कामयाबी
जलते हुए दिये से उलझी हुई हवा है

क्यूँ हर तरफ’ नगर में फैली है बदगुमानी
शोले सुलग रहे हैं दहकी हुई हवा है

शायद तिलिस्म सा है आमद का कुछ तुम्हारी
ख़ुश है तमाम आलम बहकी हुई हवा है

इक तुम ही मेरे मोहसिन बदले हुए नहीं हो
जब से निज़ाम बदला बदली हुई हवा है

क्या सरहदों के मानी क्या दुश्मनी का मतलब
जब दोनों ओर यकसाँ बहती हुई हवा है

तिलिस्म = जादू, आलम = संसार, मोहसिन = मित्रा, निज’ाम = शासक, यकसाँ = एक ही तरह की

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