सिंगापुर से…….! (पार्ट -2)

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सिंगापुर यूँ तो ऐसा देश है जिसमें इतने दर्शनीय स्थल हैं कि जिन्हें देखने के लिए काफी वक्त चाहिए………….. किन्तु हमारे पास वक्त की कमी थी, सो चाहकर भी कुछ ही दर्शनीय स्थलों का भ्रमण कर पाए।

दरअसल दिन भर के क्लासरूम सेसन तथा विभिन्न संस्थाओं/ प्राधिकारियों से ‘इन्टरएक्शन’ के बाद सांय का वक्त ही हमें ऐसा मिलता था कि जब हम सिंगापुर के दर्शनीय स्थलों और यहां के खूबसूरत बाजारों का अवलोकन कर सकते थे। सिंगापुर में ऐसे कई दर्शनीय स्थल हैं, जो किसी भी पर्यटक को आकर्षित करने के लिए पर्याप्त हैं-जैसे, मेगाजिप एडवेंचर पार्क, सेन्टोसा पार्क, मिंट म्यूजियम ऑफ ट्वायज, चांगी बार म्यूजियम, एशियन सिविलाइजेशन म्यूजियम, पेरनकान म्यूजियम, सिंगापुर डिस्कवरी सेंण्टर, मेरीना बैराज, न्यूवाटर विजिटर सेण्टर, साइंस सेण्टर सिंगापुर, चेंग हो क्रूज, ज्वेल केबल कार ड्राइव, क्लार्क क्वे, रेड डॉट डिजाइन म्यूजियम, सिंगापुर फ्लायर, सिंगापुर रिवर क्रूज, सिगापुर टर्फ क्लब, बटरफ्लाई पार्क, नेशनल आर्चिड गार्डेन इत्यादि इत्यादि। भारतीय पर्यटकों के लिए यहां लिटिल इण्डिया, मुस्तफा कामर्शियल सेण्टर घूमना अपने देश में ही घूमने जैसा है।
बहरहाल समयाभाव के बावजूद हमने सिंगापुर को अधिकाधिक ‘एक्सप्लोर’ करने का प्रयास किया। सिंगापुर सिविल सर्विसेज कॉलेज से छूटते ही हम वापस अपने ‘फ्यूरामा रिवर फ्रंट’ होटल आते और इन स्थलों को देखने के लिए निकल पड़ते। कुछ स्थानीय भारतीय मित्रों ने कहा कि सिंगापुर दर्शन ‘सेण्टोसा बीच’ के भ्रमण के बिना अधूरा है सो हमने तय किया कि ‘सेण्टोसा बीच’ जरूर देख लिया जाए। सेण्टोसा पार्क में अण्डर वाटर सी व जलचरों का सजीव प्रदर्शन, स्काई ड्राइविंग तथा सिंगापुर म्यूजियम देखना शानदार अनुभव था। इस अनुभव में अपना रोमांच तब चरम पर पहुंचा जब हमनें ‘सांग ऑफ द सी’ पर जबरदस्त वाटर लेजर शो देखा। हजारों दर्शकों की भीड़ के बीच इस वाटर लेजर शो के प्रदर्शन ने हमारा मन मोह लिया। सेण्टोसा में इसके अलावा 4-D थिएटर, फोर्ट सिलिसों को घूमना भी अदभुत क्षण थे।
सेण्टोसा के अलावा मुझे सिंगापुर के ‘फ्लायर’ ने बहुत आकर्षित किया। 165 मीटर ऊंचाई वाले इस फ्लायर में ‘ट्रांसपेरेण्ट बॉक्स’ से सिंगापुर को देखना अत्यंत रोमाचंक अनुभव था। इस फ्लायर से यूथ ओलम्पिक की गतिविधियाँ देखना तो और भी रोमांचकारी था। सिंगापुर के बाजारों में देर रात तक रौनक रहती है। यहां जगह-जगह फूड कोर्टस देखे जा सकते है। इन फूड कोर्टस में दुनिया के अलग-अलग देशों के लजीज व्यंजन खाए जा सकते हैं। एम॰आर॰टी॰ (भारतीय मेट्रो ट्रेन की तरह) से चंद सिंगापुरी डालर्स में सिंगापुर को घूमना यादगार अनुभव रहा। विश्वास नहीं होता कि महज 700 वर्ग कि॰मी॰ में फैले किसी देश में इतने पर्यटक स्थल हो सकते हैं। इस देश की प्रगति में भारतीयों का भी बहुत बड़ा योगदान है।
जनसंख्या में लगभग दस फीसदी भागेदारी भारतीयों की है और कोई भी क्षेत्र हो, चाहे उद्योग या उत्पादन या फिर तकनीक……. सर्वत्र भारतीयों की भूमिका सहज स्वीकार्य है।
सिंगापुर में बिल्डिंग्स की बनावट तथा भू-खण्डों के प्रयोग को देखकर बार-बार इस देश के नीति निर्माताओं को धन्यवाद देने का मन करता रहा, जिन्होंने छोटे-से-छोटे भूखण्ड का ‘आप्टिमम यूज’ करते हुए उसे सुंदर से सुंदरतम बना दिया है। सड़क पर पैदल यात्रियों को सड़क पार करते हुए ट्रैफिक का रूक जाना……… रेड-ग्रीन लाइट सिग्नलस का शत-प्रतिशत अनुपालन करना ऐसे उदाहरण थे जो वास्तव में इस देश में ‘‘सिविक सेंस’’ होने का अहसास कराते थे। रेन वाटर हार्वेस्टिंग, रूफ टॉप ग्रीनरी इत्यादि को देखकर यहां की प्रशासनिक व्यवस्था के प्रति आदर का भाव उत्पन्न होता रहा।
एक सप्ताह की इस सिंगापुरी यात्रा से निश्चित रूप से प्रशासनिक समझ विकसित हुई। यहां की चुस्त-दुरूस्त कानून और व्यवस्था को देखकर मन बार-बार यही सोचता रहा कि योजनाबद्ध प्रतिबद्धता और योजनाओं के क्रियान्वयन में ईमानदारी ने इस देश को विगत 45 साल में कहां से कहां पहुंचा दिया है। 1965 में आजाद हुये इस देश ने आशा से कहीं ज्यादा तेजी से विकास किया है और दुनिया में अपने अस्तित्व का सशक्त प्रमाण प्रस्तुत किया है।
सिंगापुर से लौटने के बाद भी कुछ स्थानीय भारतीय मित्रों की याद आती रही। इस यात्रा के दौरान श्रद्धा जैन जी, प्रशांत जी, अरूण दीक्षित दम्पत्ति, विक्रम-अम्बिका द्वारा दिए दिए गए स्नेह-सम्मान के प्रति मन अब तक आभारी है। सिंगापुर के बाद हमारा अगला पड़ाव वियतनाम था, जिसके बारे में तफसील से अगली प्रस्तुति में लिखने का प्रयास करूंगा।

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