साहित्य और प्रशासन के इम्तिज़ाज की राह का मुसाफिर – पवन कुमार
दोस्तो आज के सेशन की खास शख्सियत आईएएस मोहतरम पवन कुमार साहिब
नाम सुनते ही अहसास हो जाता है कि पवन कुमार एक ऐसी लिटरेरी शख्सियत का नाम है जिसके अल्फ़ाज़ में अपने नाम की सिफ़त के मुताबिक हवा जैसी रवानी है ।
वो शख्सियत जिसने प्रशासनिक ओहदे पर फ़ायज़ होने के साथ साथ अपने सीने में उबल रहे साहित्यिक तूफान के जोश को थमने नहीं दिया और प्रशासनिक व साहित्यिक सेवा के बीच एक मजबूत कड़ी बनाकर साहित्य व प्रशासन के इम्तिज़ाज से एक नई राह समाज को दिखाई है ।
आपका जन्म उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में 08 अगस्त 1975 को हुआ। विभिन्न जनपदों में जिलाधिकारी के ओहदों के साथ साथ आप उ.प्र. शासन में कृषि, खाद्य रसद, सिंचाई, सूक्ष्म लघु एवं मध्यम उद्योग, आवास में विशेष सचिव, प्रबंध निदेशक , पश्चिमांचल विद्युत वितरण निगम के ओहदों पर भी फ़ायज़ रहे हैं । आपने जितनी ईमानदाराना तरीके से साहित्य की सेवा के लिए वक़्त निकाला है उसी तरह प्रशासनिक सेवा की लग्नशीलता, कार्यकुशलता व चुनाव प्रबंधन के लिए भी उन्हें अनेकों बार सम्मानित किया गया है । वो सरकारी सेवा में रहते हुए भी बेहतर तरीके से साहित्य के साथ संतुलन बनाये रखे हुए हैं।
तक़रीबन 20 साल से लेखन में रुचि रखते हुए उनके दो मजमुआ वाबस्ता और आहटें मंज़रे आम पर आ चुके हैं ।
इसके साथ उनके कई म्यूज़िक एलबम में गीत व ग़ज़ले रिलीज़ हो चुके हैं जिसमे ज़ी म्यूजिक के साथ उनके दो गीत ‘पानी तेरा रंग’ और ‘ सुन ले ओ साथिया’ बहुत मक़बूल हुए । आपकी ग़ज़लों को हरिहरन, साधना सरगम, रूपकुमार राठोड़, मो. वकील ने अपनी आवाज़े दी हैं ।
आपके शायराना ज़ौक़ के लिए आपको कन्हैया लाल प्रभाकर सम्मान, मैथिली शरण गुप्त सम्मान , ज़ीशान मक़बूल अवार्ड, सुमित्रा नंदन पंत अवार्ड और बहुत से एज़ाज़ात से नवाज़ा जा चुका है ।
मुख्तलिफ़ मज़मून निगारों के हवाले से बात की जाए तो आप अपने अहसासात को सलीके से अल्फ़ाज़ देने का हुनर भी रखते हैं और शदीद गर्म फ़ज़ाओं में अपने अलफ़ाज़ के अंदर वायु जैसी शीतलता व रवानी भी रखते हैं ।
आइये आपका इस्तकबाल आपके इन अशआर के साथ करते हैं
धूप में नहाए थे रौशनी के पहरे थे
फिर भी उन दरख़्तों के साए कितने गहरे थे
देखता रहा मुझ को आइना भी हैरत से
आज मेरे चेहरे में जज़्ब कितने चेहरे थे
Host Hilal Badayuni