खुदा हाफिज़ गाजियाबाद.
गाजियाबाद से मेरा रिश्ता बहुत ज्यादा नही रहा बमुश्किल १० माह का ये साथ रहा. गत नवम्बर में ही यहाँ आया था और अब चलने का तकाजा सामने है …..इस शहर से मैं बहुत ज्यादा नही जुड़ सका एक शेर है न ” सुनते थे बहुत ……..काटा तो एक कतरा लहू भी न निकला”….वाली हालत रही मेरी नज़र में इस शहर की ….जिसे भी देखिये एक अंधी दौड़ का हिस्सा बना हुआ है….किस प्रोपर्टी की कीमत कितनी हो गयी… इसी बहस मुबाहिसे में पड़े लोग………………जगह जगह हार्न – हूटर की आवाजें और उनमे बीच में किसी अम्बुलेंस की सायरन की आवाज़ और उससे अनजान लोग……हर गली मोहल्ले में इंजिनीरिंग – डॉक्टरी संस्थानों के बड़े बड़े होर्डिंग, जो आने वाली पीढ़ी को बेबकूफ बनाने पर आमादा हैं……..एनसीआर का दम भरते लोग जो आने वाले कोमन वेल्थ गेम्स को लेकर अति उत्साहित हैं उन्हें लगता है कि जैसे ही ये गेम शुरू होंगे उनके दिन अचानक बहुर जायेंगे………….और वे अचानक किसी दूसरे लुभावने ग्रह पर चले जायेंगे………अपराध-अपराधिओं की एक अच्छी शरण स्थली……… .इसी बीच एक और ख़बर मिली कि साहेब ये शहर भारत की 6थ सबसे बड़ी एमर्जिंग सिटी भी है……तो और भी हैरानी हुई जैसे हरिया हर्कुलिस (वही मनोहर श्याम जोशी वाला) को हुई थी. गाजियाबाद दरअसल दो विपरीत परिस्थितियों से जूझता शहर है …एकतरफ माल कल्चर है दूसरी तरफ़ अभी भी झुग्गी झोपडी बड़ी मात्रा में हैं….. उसी सड़क पर लैंड क्रूसर है तो उसी सड़क पर बैलगाडी और टट्टू भी…… बड़ी अजीब सी हालत है पैसे के पीछे भागते बदहवास से लोग…… ……………… लेकिन मैं इस शहर का यही रूप देखूंगा तो शायद गलती होगी. इस शहर की सबसे ख़ास बात ये है कि हर आदमी को यहाँ पनाह है…जो लोग दिल्ली को अफोर्ड नही कर सकते उनके लिए ये शहर नया जीवन है सस्ते का सस्ता और दिल्ली वाले भरपूर मज़े भी…….साहित्य के क्षेत्र में यहाँ कुंवर बेचैन, पराग के सम्पादक देवसरे जी, गायिका विद्या भारति हैं कुछ बड़े जर्नलिस्ट भी हैं और उद्योग पति होना तो लाजिमी है ही …….इन सबसे ऊपर सुरेश रैना है जो भारत के नए क्रिकेटर हैं….इससे पहले यहाँ के मनोज प्रभाकर अच्छा खासा नाम कमा चुके हैं ……. व्यक्तिगत तौर पर मैं इस शहर का आभारी भी हूँ क्योंकि यहाँ मेरी मुलाक़ात उन चन्द लोगों से हुई जिन्होंने मुझे जीवन को देखने का एक नया तरीका दिया…और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो मेरे दिल के करीब भी आए……दोस्त भी बने…….एक साथ मै इन सबके नाम लू तो ज़ाहिर है कुछ नाम तुंरत उभरते हैं……दीपक अग्रवाल, सर्व जीत राम, ओपी शर्मा, जे पी जैन, डॉ जय हरी, कुंवर बेचैन, कमलेश भट्ट, संजय तिवारी, ओझा, आशु गुप्ता, बिमल दुबे, विकाश, मनोज, रजनीश राय, राजपाल सिंह जी,अशोक अग्रवाल, सुदेश शर्मा.( हो सकता है की कुछ नाम जल्दवाजी में छूट भी गए हो ). इस शहर में आकर अपने कुछ पुराने दोस्तों से भी मुलाक़ात हो गयी…प्रो. रोहित,संजू भदौरिया, मोहित और सबसे ऊपर १९९७ बैच के वित्त अधिकारी पवन जी से जो मुझे बेहद पसंद हैं. तमाम शिकायतों के बावजूद इस शहर को इतनी आसानी से भूला भी नही जा सकता…….आख़िर आई ऐ एस भी तो यहीं से बना हूँ जो मेरे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है… १ सितम्बर से जब मै ट्रेनिंग पर मसूरी जा रहा हूँ तो शहर की तमाम खट्टी मीठी यादें मेरे साथ हैं……दुनिया गोल है शायद कुदरत फ़िर गाजियाबाद से मिलाये ……………..अहमद फ़राज़ का एक शेर है फ़िर इसी राह गुज़र पर शायद हम कभी मिल सकें मगर शायद, जो भी बिछुडे हैं कब मिले हैं फ़राज़ फ़िर भी तू इन्तिज़ार कर शायद…. …………….इन्ही उम्मीदों के साथ खुदा हाफिज़ गाजियाबाद.