अकील नोमानी – मेरे अज़ीज़ शायर
******************************
दिल से निबाह कर के मुसीबत में आ गए, दो हर्फ़ जिंदगी को कहानी बना गए।
महदूद कर दिया था बिखरने ke शौक ने, ख़ुद में सिमट गए तो ज़माने पे छा गए।
*********************************
ख़ुद को सूरज का तरफदार बनने क लिए,
लोग निकले हैं चरागों को बुझाने क लिए,
गम तो ये है क parinde ही मदद करते हैं,
जब ही आता है कोई जाल बिछाने क लिए,
कितने लोगों को यहाँ चीखना पड़ता है अकील,
एक कमजोर आवाज़ दबाने क लिए।
***********************************
मैं मकान रहा वो मकीं रही,
जो बजाहिर और कहीं रही,
कोई हुस्न मेरी नज़र में रहा,
सो ये कायनात हसीं रही,
उन्हें आसमानों का शौक रहा,
मera ख्वाब सिर्फ़ ज़मीं रही,
*************************************
जेहन जैसे तो कभी दिल जैसे, मुझमे कुछ log hain shamil jaise ।
जब भी देखा तो थकन ख्वाब हुई, है कुछ लोग थे मंजिल जैसे।
उसने यूँ भी देखा हमें अक्सर, हम भी हो दीद क काबिल जैसे।
जिंदगानी की ये मुहतातार्वी, कोई दुश्मन हो मुकाबिल जैसे।
जब मिला इज्ने तकल्लुम तो अकील, यों मेरे होंट गए सिल जैसे।
************* खुदा हाफिज़ कैसा लगा………. जल्दी फ़िर आऊंगा.