कहने को इंसान बहुत हैं
कहने को इंसान बहुत हैं
पर इनमें बेजान बहुत हैं
मैं इक सादा वरक अकेला
बंधने को जुजदान बहुत है
कच्चे रंग सँभालें ख़ुद को
बारिश के इम्कान बहुत हैं
दरियादिल है शायद मालिक
इस घर में मेहमान बहुत हैं
काश इनमें कुछ फूल भी होते
कमरे में गुलदान बहुत हैं
काश कि कोई जह्न भी चमके
जिस्म यहाँ जीशान बहुत हैं
इश्क ही नेमत इश्क खुदाई
पर इसमें नुकसान बहुत हैं
वरक = पृष्ठ, जुजदान = पुस्तक बांधने का कपड़ा, इम्कान = सम्भावना, जीशान = चमक