“आइस ब्रेकिंग” ग़ज़ल……!

काफी दिनों के बाद आज ब्लॉग को देखा तो अपनी मशरूफियत का एहसास हुआ…..न कोई पोस्ट न कोई टिप्पणी …….गोरखपुर से मसूरी का ये सफ़र बहुत ही शांति से गुज़र रहा है…..इस ख़ामोशी को एक ग़ज़ल के साथ तोड़ रहा हूँ एक ग़ज़ल के साथ……मगर यह ग़ज़ल मेरी न होकर मेरी हमसफ़र और शरीके हयात अंजू की है…… ग़ज़ल कच्ची है, गलतियाँ होनी ही हैं….! मगर फिर भी पेश है ये ग़ज़ल अपने उसी रूप में बगैर किसी इस्लाह के…….!

हवाओं का दरख्तों से मुसलसल राब्ता है
कि उसकी याद का खुश्बू से जैसे वास्ता है !!
हसीं मंज़र है वो नज़रों में उसको कैद कर लो
इन्ही लम्हों से सदियों का निकलता रास्ता है !!
तेरी चाहत के दरिया में उतर कर सोचते हैं
कि इसके बाद भी जीने का कोई रास्ता है !!
हरे पत्तों पे ठहरी बारिशों कि चाँद बूँदें
इन्ही आँखों से उन अश्कों का गहरा रस्स्ता है !!
किसी भी हाल में ‘गेसू’ कभी तन्हा कहाँ है
कि गोया साथ उसके चल रहा एक रास्ता है !!
जल्दी मुलाक़ात होगी एक नयी ग़ज़ल के साथ

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