तुम्हें पाने की धुन इस दिल को यूँ अक्सर सताती है बंधी मुट्ठी में जैसे कोई तितली फड़फड़ाती है चहक उठता है दिन और शाम नग्में गुनगुनाती […]
तुम्हें पाने की धुन इस दिल को यूँ अक्सर सताती है बंधी मुट्ठी में जैसे कोई तितली फड़फड़ाती है चहक उठता है दिन और शाम नग्में गुनगुनाती […]
वो अक्सर मेरे सब्रो-जब्त को यूँ आजमाते हैं हवा जख़्मों को देकर फिर नमक उन पर लगाते हैं यहाँ तो हर घड़ी हर सिम्त इक हंगामा बरपा […]
जहां हमेशा समंदर ने मेहरबानी की उसी जमीन पे किल्लत है आज पानी की उदास रात की चौखट पे मुन्तजिर आँखें हमारे नाम मुहब्बत ने ये निशानी […]