Posts archive for 2014

ख़ूबसूरत से कुछ गुनाहों में

ख़ूबसूरत से कुछ गुनाहों में उम्र गुज’रे तेरी पनाहों में ख़्वाब गिरते ही टूट जाते हैं कैसी फिसलन है तेरी राहों में अब ज’रूरत न हो तख़ातुब […]

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हसरतें दम तोड़ती है यास की आग़ोश में

‘‘हसरतें दम तोड़ती है यास की आग़ोश में सैकड़ों शिकवे मचलते हैं लबे-ख़ामोश में’’¹ रात तेरे जिस्म की खुशबू से हम लिपटे रहे सुब्ह बैरन सी लगी […]

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बेबस थे दिन तो सहमी हुई रात क्या कहें

बेबस थे दिन तो सहमी हुई रात क्या कहें गुज़रे तेरे बगैर जो लम्हात, क्या कहें हमसे न पूछ यार यहाँ हाल-ए-मुंसिफी अच्छे नहीं है अपने ख़यालात […]

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