वो मेरा खुदा है कि नहीं…..!

jjjjइधर लम्बे समय से कोई पोस्ट ब्लॉग पर नहीं लगा सका….सोचा चुप्पी तोड़ी जाये. आगाज़ एक ऎसी ग़ज़ल से कर रहा हूँ जो मेरी धर्मपत्नी ने लिखी है…..तमाम अरूज़ी गलतियों के बावजूद सिर्फ रदीफ़ के निबाह के आधार पर इसे ग़ज़ल का नाम दिया जा रहा है ! मुलाहिजा फरमाएं…. :-

उसकी बातों में कहीं मेरी अदा है कि नहीं
मैं भी देखूं कि वो मेरा खुदा है कि नहीं !!

बढ़ते ही जाते हैं उसकी यादों के सफ़र
जेह्न जाता है कहाँ दिल को पता है कि नहीं !!
कल उड़ाई थीं जुल्फें परीशाँ जिसने
आज भी उसकी गली में वो हवा है कि नहीं !!
तब तो बिखरी थी तुम्हारी ही नज़र से खुश्बू
अब भी क्या तेरी नज़र में वो नशा है कि नहीं !!
उसने छोड़ा था जिस हाल में ‘गेसू’ तुझको
आज भी तीर वहीँ दिल पे लगा है कि नहीं !!

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