लाज़िम है बारिशों का मियां इम्तिहान अब……!
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उतरा है खुदसरी पे वो कच्चा मकान अब,
लाज़िम है बारिशों का मियां इम्तिहान अब !!
लाज़िम है बारिशों का मियां इम्तिहान अब !!
मुश्किल सफ़र है कोई नहीं सायबान अब,
है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब !!
क़ुर्बत के इन पलों में यही सोचता हूँ मैं,
कुछ अनकहा है उसके मिरे दरमियान अब !!
याद आ गयी किसी के तबस्सुम की एक झलक,
है दिल मिरा महकता हुआ ज़ाफ़रान अब !!
यादों को कैद करने की ऐसी सज़ा मिली,
वो एक पल बना हुआ है हुक्मरान अब !!