बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी……!

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फिर से तबादला…… अब गौतम बुद्ध नगर के लिए जाने का फरमान हो गया है. प्रदेश की प्रगति के मानकों के आधार पर शायद सबसे प्रगतिगामी शहर में अगला पड़ाव होगा. बदायूं से विदा हो लिए……. मगर बदायूं को छोडते वक्त एहसास हुआ कि इस कम समय में ही इस शहर से कितना लगाव हो गया था…….!

वैसे भौगोलिक रूप से देखा जाए तो बदायूं उत्तर प्रदेश के नक्शे पर तराई के उस इलाके के रूप में जानाजाता है जो वर्षाधिक्य क्षेत्र है. समूचा क्षेत्र गंगा व रामगंगा जैसी बडी नदियों से घिरा हुआ है.गत वर्ष जब मैं बदायूं पहुंचा था तो यह क्षेत्र बाढ से घिरा हुआ था, तत्काल आपदा राहत कार्यक्रमों से जुडनापड़ा, महीने दो महीने में जैसे तैसे बाढ की तबाही कम हुई तो पंचायत चुनाव सिर पर आ खड़े हुएऔर उसके बाद फिर एक के बाद एक चुनौती भरे काम……….! बहरहाल मैं इस समय सरकारी कामोंकी फेहरिस्त में नहीं पड़ना चाहता….! ये सब तो चलता ही रहता है ! फिर से एक बार बदायूं के बारे में…. बदायूं दर असल पुरानी रवायतों का शहर है. इतिहास गवाह है कि दिल्ली सल्तनत सेलेकर मुगलों के समय तक यह क्षेत्र कृषि उत्पादन के लिहाज़ से उपजाऊ इलाके के रूप में अपनीपहचान रखता था . बदायूं अपने समय में यह महत्वपूर्ण ‘इक्ता’ (सैनिक इकाई ) के रूप में जाना जाताथा. बदायूं की एक महत्वपूर्ण पहचान इसकी सांस्कृतिक गतिविधियों से भी है.कव्वाली, गजल, सूफी गायन, तबला वादन जैसी विधाओं में बदायूं के हुनरमंदों ने अपनी महत्वपूर्ण पहचान बनाईहै …..! पद्म्भूषण उस्ताद् निसार हुसैन से लेकर महान गीतकार शकील बदायूंनी , गीतकार उर्मिलेश , डा0 वृजेन्द्रअवस्थी से लेकर आज के समय के उस्ताद गायक राशिद खान ( जब वी मेट फेम……. आओगे जबतुम ओ साजना के गायक ) बदायूं की पहचान को और भी पुख्ता करते है…….! विकास कीआपाधापी से दूर इस छोटे से शहर (वैसे माफ कीजिएगा……..आबादी और क्षेत्रफल के हिसाब से यहउत्तर प्रदेश के सबसे बड़े जिलों में से एक है)!

बदायूं में न तो सीमेन्ट कंक्रीट के जंगलात है और न तेज भागती कारों की आवाजें……..! सच तो यह है कि शाम के बाद पूरा शहर जैसे उनींदा सा हो जाता है ……… ! ऐसा महसूस होता है कि गंगा केतट से टकरा कर हवाएं आती हैं और पूरे शहर को नींद के झोंके में ले लेती हैं. न कोई माल न कोईरेस्तरां और न कोई बहुमंजिला अपार्टमेन्ट…….! यह भी कहा जा सकता है कि बस किसी गाँव केआकार को कुछ ‘इनलार्ज’ कर दें तो बदायूं की शक्ल आप बन जायेगी…!

इस शहर में कुछ ऐसे लोगों से रिश्ते बने जिनसे दिली जुड़ाव हो गया. अमित गुप्ता जी, उदयराज जी, मनोज कुमार,प्रदीप , अक्षत, नियाजी, अकरम, हसीबसोज, राजन मेहरीरत्ता, रोम्पी, किशन,दीक्षित,जहीर, अब्बास …………..जैसे लोग बदायूं में जुड़े. यह जुडाव दिन ब दिन और भी गहरा होता गया. नए साल पर धमाकेदार ‘कल्चरल इवनिंग’ रही हो या होली पर रंग बिखरे हों….. ककोडा का परंपरागत मेला रहा हो या हर इतवार को क्रिकेट का मजमा……..नियाजी के तबले की थाप होया कुमार विश्वास की कविताओं का खुमार ………सब कुछ इसी बदायूं की सरजमीं पर हुआ……..! इनलोगों के अलावा मैं दो लोगों का नाम और लेना चाहूँगा बल्कि यूं कहिए कि दो युगलों के नाम लेनाचाहूँगा जिनकी संगत ने बदायूं प्रवास को और खुशगवार बना दिया……….. ये दो युगल थे बृजेश /विनीता और नीरज / मीतू ऐसा लगा कि ये दोनो युगल हमारे घर परिवार के ही अभिन्न सदस्य हैं…. खाने-पीने-उठने-बैठने-चलने-घूमने से लेकर सांस लेने तक की कवायद साथ-साथ……!

बहरहाल, हम मुलाजिमों के लिए तबादला एक सतत प्रक्रिया है. बदायूं में जो भी वक्त गुजरा, वो अपनेपुराने दिनों में लौट जाने वाला एहसास था. ये वो अहसास था जो इस बात को और पुख्ता करता है किजिन्दगी कहीं है तो वो ‘दिखावे- आपाधापी- चकाचौंध” से हटकर है…..! अब जबकिगौतमबुद्वनगर(नोएडा-ग्रेटरनोएडा ) जाने का फरमान हुआ तो बदायूं से बिछुडने का गम तारी है, मगरयह मानते हुए कि तबादला तो सरकारी नौकरी का यह हिस्सा है……… चल दिये है गौतमबुद्वनगर कीओर………! देखते हैं कि इस नए पड़ाव पर क्या कुछ होता है ! मगर यह सुनिश्चित है बृजेश कीउन्मुक्त हंसी, नीरज की समृद्व शब्द सम्पदा और उसका तत्क्षण प्रयोग, विनीता के हाथें के करेले,नियाजी के तबले के तीन ताल का स्वर, पीहू के अंकल कहने का अन्दाज और मीतू की बेक्डवेजीटेबिल लम्बे समय तक जेहन में रची बसी रहेगी…..!

विश्वास है कि दुनिया छोटी है और गोल है…….. सो उम्मीद कि फिर मिलेंगे बल्कि जरूर मिलेगें, लेकिनभी तो यही एहसास साथ है कि ‘बीते हुए लम्हों की कसक साथ तो होगी……’!!!!!

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