पकती उम्रों को ये एहसास दिलाने होंगे
पकती उम्रों को ये एहसास दिलाने होंगे
नई आँखों में नए ख़्वाब सजाने होंगे
खारा पानी है सो आओ इसे मीठा कर लें
अब तो दरिया में समन्दर भी बहाने होंगे
सबकी दुनिया है अलग सबको बिछड़ना है मगर
फूल को शाख़ से रिश्ते तो निभाने होंगे
वक्त मुश्किल हो तो ये सोच के चुप रहता हूँ
कुछ ही लम्हों में ये लम्हे भी पुराने होंगे
देर होती है तो ये सोच के घर जाता हूँ
उसकी आँखों में कई लाख बहाने होंगे