लाज़िम है बारिशों का मियां इम्तिहान अब……!

images[9]एक अरसे से ब्लॉग से गायब रहने के बाद फिर से हाज़िर हो रहा हूँ…..दरअसल गोरखपुर से आने के बाद मसूरी की ट्रेनिंग में ऐसा व्यस्त हुआ कि पढना- लिखना सब पीछे छूट गया….जीवन बस जैसे पीपीटी प्रेजेंटेसन’स तक सिमट कर रह गया। सोचा इस चादर के बाहर भी पैर फैलाए जाएँ इसी कोशिश- मशक्कत में ये ग़ज़ल लिख गयी सो बगैर देरी किये ये ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ…..!

 

उतरा है खुदसरी पे वो कच्चा मकान अब,
लाज़िम है बारिशों का मियां इम्तिहान अब !!

मुश्किल सफ़र है कोई नहीं सायबान अब,
है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब !!

क़ुर्बत के इन पलों में यही सोचता हूँ मैं,
कुछ अनकहा है उसके मिरे दरमियान अब !!

याद आ गयी किसी के तबस्सुम की एक झलक,
है दिल मिरा महकता हुआ ज़ाफ़रान अब !!

यादों को कैद करने की ऐसी सज़ा मिली,
वो एक पल बना हुआ है हुक्मरान अब !!

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