मैनपुरी का मुशायरा… पहली किश्त !
इस मुशायरे की शान होंगी मोहतरमा इशरत आफरीन……! वे इस मुशायरे को इंटरनेशनल दर्ज़ा दिलाएंगी क्योंकि मोहतरमा पाकिस्तान की हैं और फिलहाल अमेरिका में शिफ्ट हो चुकी हैं…..! हमारी खुशकिस्मती होगी उन्हें सुनना। मोहतरमा इशरत आफरीन का नाम उर्दू अरब में बडी इज्ज़त के साथ लिया जाता है. वे मूलतः पाकिस्तानी हैं जो एक भारतीय वकील जनाब़ सैयद परवेज से विवाह करने के बाद अमेरिका में हयूस्टन टेक्सास में बस गयीं. मोहतरमा इशरत आफरीन उर्दू-अदब की उन नामचीन शायराओं में से एक हैं जिन्होने ‘‘नारीवादी आन्दोलन‘‘ को चलाने में मजबूत भूमिका निभाई है. अदा ज़ाफरी, जोहरा निगाह, फहमीदा रियाज़, किश्वर नाहीद, परवीन शाकिर की श्रृंखला में मोहतरमा इशरत आफरीन का नाम बड़े अदब के साथ शामिल किया जाता है. मोहतरमा आफरीन के दो गज़ल संग्रह ‘कुंज पीले फूलों का‘ (1985) तथा ‘धूप अपने हिस्से की‘ (2005) प्रकाशित हो चुके हैं. मुझे याद आ रहा है कि जगजीत सिंह ने मोहतरमा की एक गज़ल गाई है जो बहुत पॉपुलर हुयी…..
अब चलते हैं मंच के अगले नामवर शायरों की जानिब…..! इधर कुछ समय से जिन युवा गज़लकारों ने बडी मजबूती से अपनी कलम से अपने होने का एहसास कराया है उनमें से ‘आलोक श्रीवास्तव‘ एक बडा नाम है। आलोक मेरे मित्र हैं और सच तो यह है कि मुझे फक्र है कि आलोक मेरे मित्र हैं. आलोक को उनके शानदार लेखन के लिए हाल ही में रूस का साहित्यिक ‘पुश्किन ‘ अवार्ड मिला है. युवावस्था में ही इस शायर की कृति ‘आमीन‘ धूम मचा चुकी है. गज़ल गायक जगजीत सिंह और शुभा मुदगल ने यदि इस युवा शायर की ग़ज़लें गाई है तो उसका चुनाव कहीं से गलत नहीं है. मध्यप्रदेश के सांस्कृतिक नगर विदिशा में आलोक श्रीवास्तव का बचपन गुज़रा और वहीं से आपने हिंदी में स्नातकोत्तर तक शिक्षा ग्रहण की. बाद में वे पत्रकारिता से जुड़ गए. बेहद बारीक़ अहसासात को स्पर्श करती हुई आपकी ग़ज़लियात अपनी संवेदनाओं के लिये जानी जाती हैं. सलीक़े से कही गई कड़वी बातें भी आपकी रचनाधर्मिता की उंगली पकड़ कर अदब की महफ़िल में आ खड़ी होती हैं. जगजीत सिंह और शुभा मुद्गल जैसे फ़नक़ारों ने आपकी ग़ज़लियात को स्वर दिया है. इन दिनों आप दिल्ली में एक समाचार चैनल में कार्यरत हैं. यदि पुरस्कारों की फ़ेहरिस्त बनाई जाए तो ‘अभिनव शब्द शिल्पी सम्मान 2002′; ‘मप्र साहित्य अकादमी का दुष्यंत कुमार पुरस्कार-2007′; ‘भगवशरण चतुर्वेदी सम्मान 2008′; ‘परंपरा ऋतुराज सम्मान-2009′ और ‘विनोबा भावे पत्रकारिता सम्मान-2009′ आपके खाते में अभी तक आते हैं. कल ही वे अपनी नयी ग़ज़ल मुझे फ़ोन पर सुनकर एहसासों से तर बतर कर रहे थे…..फिलहाल मैं यहाँ उनकी उस ग़ज़ल को पोस्ट जकर रहा हूँ जिसने मुझे उनका मुरीद बना दिया…. मुलाहिजा फरमाएं –
चिंतन, दर्शन, जीवन, सर्जन, रूह, नज़र पर छाई अम्मा