अमृतसर के बहाने इतिहास से गुज़रते हुए…..!
माता वैष्णों देवी की इस यात्रा के बादहमारा अगला पड़ाव अमृतसर था. जम्मू सेएन.एच. से होते हुए लगभग 5 घण्टे के सफर केबाद हम देर रात अमृतसर पहुंचे. पहली नजर मेंही अमृतसर हमें बडा सुन्दर-सुन्दर सा लगा. जबहम अमृतसर पहुंचे तो आधी रात गुजर चुकी थी,रात का एक बज रहा था….. लेकिन शहर के रास्तोंपर सन्नाटे की जगह पर्याप्त हलचल थी. सडकें कुछचौडी-चौडी थी, रास्तों के किनारे बने ढ़ाबों पर अभीतक ठीक ठाक भीड़ थी. थकान की वज़ह से सुबहका कार्यक्रम बनाकर हम लोग सो गए।
हमारे एजेण्डे के मुताबिक सुबह का पहलाकाम हरमिन्दर साहब (स्वर्ण मंदिर) पर मत्थाटेकना था. हम निकल लिए हरमिन्दर साहब कीतरफ. रात के विपरीत अब नजारा बिल्कुल अलगथा. सडकें वाहनों और खरीददारों से भरी हुई थी ….रात जो सडकें चौड़ी- चौड़ी नजर आ रही थीं ,
भीड़ने उनका नजारा बिल्कुल बदल दिया था. बहरहालतमाम संकरे बाजारों से होते हुए हम हरमिन्दरसाहब पहुंचे. हरमिन्दर साहब के कारण हीअमृतसर की दुनिया भर में पहचान है. रिकॉर्डबताते हैं कि भारत में आगरा के बाद सबसे ज्यादा पर्यटक अमृतसर के स्वर्ण मंदिर
को ही देखने आते हैं. अमृतसर काइतिहास बहुत गौरवमयी है. यह शहर अनेक त्रासदियों और दर्दनाक घटनाओं का गवाह रहा है, वो चाहे जलियांवाला बागनरसंहार हो या मुल्क के बंटवारे के दौरान दंगे. अफगान और मुगलों कि बर्बरताओं के बावजूद इसके बावजूद सिक्खों नेअपने दृढ संकल्प और मजबूत इच्छाशक्ति से इस शहर कि गरिमा को बनाये रखा. बहरहाल हम पहुंचे श्री हरमिंदर साहब, जिसे श्रद्धा से दरबार साहिब या स्वर्ण मंदिर भी कहा जाता है जो सिखों का पावनतम धार्मिक स्थल है. भौगोलिक रूप सेपूरा अमृतसर शहर स्वर्ण मंदिर के चारों तरफ बसा हुआ है. स्वर्ण मंदिर में प्रतिदिन हजारों श्रद्धालु और पर्यटक आते हैं.अमृतसर का नाम अमृत सरोवर के नाम पर रखा गया है जिसका निर्माण गुरु रामदास ने किया था. पूरा स्वर्ण मंदिर सफेदसंगमरमर से बना हुआ है और इसकी दीवारों पर सोने की पत्तियों से नक्काशी की गई है. यहां कि अद्भुत विशेषता लंगर हैजो चौबीस घंटे चलता है, जिसमें कोई भी प्रसाद ग्रहण कर सकता है. श्री हरमंदिर साहिब में ही एक जुजूबे का वृक्ष भी हैजिसके बारे में कहा जाता है कि जब स्वर्ण मंदिर बनाया जा रहा था तब बाबा बुद्धा इसी वृक्ष के नीचे बैठे थे और मंदिर केनिर्माण कार्य पर नजर रखे हुए थे. इतिहास बताता है कि स्वर्ण मंदिर को कई बार नष्ट किया गया लेकिन भक्ति और आस्थाके चलते सिक्खों ने इसे फिर पुराना रूप दे दिया. 19 वीं शताब्दी में जब अफगा़न हमलावरों ने इसे नष्ट कर दिया तोमहाराजा रणजीत सिंह ने इसे न केवल दोबारा बनवाया बल्कि इसे सोने की परत से भी सजाया. पूरे स्वर्ण मंदिर में फ्लडलाइट्स की व्यवस्था की गई है जिससे शाम के समय यह स्थल बहुत ही प्रकाशमान हो जाता है. लगभग 400 साल पुरानेइस गुरुद्वारे का नक्शा खुद अर्जुन देव ने तैयार किया था. हरमंदिर साहिब में पूरे दिन गुरबाणी (गुरुवाणी) की स्वर लहरियांगूंजती रहती हैं. मंदिर परिसर में पत्थर का एक स्मारक भी है जो, जांबाज सिक्ख सैनिकों को श्रद्धाजंलि देने के लिएलगाया गया है. मंदिर से कुछ ही दूरी पर स्वर्ण जड़ित, अकाल तख़्त है. सिक्ख पंथ से जुड़े मसलों का समाधान इसीसभागार में किया जाता है.
अकाल तख्त का निर्माण सन 1606 में किया गया था. पास में बाबा अटल नामक स्थान पर एक नौमंजिलाइमारत भी है. बताते हैं कि हरगोविंद सिंह के बेटे अटल राय का जन्म इसी इमारत में हुआ था. हमने अमृतसर पर मत्थाटेकने के बाद यहॉं के प्रसिद्व लंगर भोज का आनन्द लिया. क्या राजा क्या फकीर ……….समानता का असली दर्शन इसलंगर में देखने को मिला. लाखों लोगों का रोज ’लंगर छकना’ इस मंदिर की महान परम्परा है,जिस पर हम गर्व कर सकतेहैं.
मंदिर में मत्था टेकने के बाद हम रवाना हुए जलियां वाला बाग की तरफ……………. जलियां वाला बाग की दूरी हरमिन्दरसाहब से लगभग 500 मीटर की है. हम सब इस ऐतिहासिक स्थल पर पैदल पहुंचे. इस स्थल पर पहुँचते ही हमें अद्भुतअनुभव हुआ. यह वही जगह है ,जिसने भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का स्वरूप निर्धारित किया था हमे याद आया कि ….जलियाँ वाला बाग़ में 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन ब्रिगेडियर जनरल डायर के नेतृत्व में अंग्रेजी फौज ने गोलियांचला के निहत्थे आन्दोलनकारियों महिलाओं और बच्चों सहित सैकड़ों लोगों को मार डाला था और हज़ारों लोगों को घायलकर दिया था. दरअसल पहले विश्व युद्ध में भारतीय नेताओं और जनता ने ब्रिटिश हुकूमत का साथ यह सोच कर दिया थाकि युद्ध समाप्त होने पर ब्रिटिश सरकार भारतीय स्वतंत्रता की दिशा में सोचेगी मगर परंतु ब्रिटिश सरकार ने इसके विपरीतजाकर मॉण्टेगू-चेम्सफ़ोर्ड सुधार लागू कर दिए जो इस भावना के विपरीत थे. पूरे देश में इन सुधारों का विरोध किया गयाकिन्तु पंजाब में यह विरोध कुछ अधिक बढ़ गया. भारत में, विशेषकर पंजाब और बंगाल में ब्रिटिशों का विरोध किनविदेशी शक्तियों की सहायता से हो रहा था, यह पता लगाने के लिए 1918 में एक ब्रिटिश जज सिडनी रॉलेट की अध्यक्षतामें एक सेडीशन समिति नियुक्त की गई . इस समिति के सुझावों के अनुसार भारत प्रतिरक्षा विधान (1915) का विस्तारकर के भारत में रॉलेट एक्ट लागू किया गया था, जो आजादी के लिए चल रहे आंदोलन पर रोक लगाने के लिए था. इसएक्ट के अंतर्गत ब्रिटिश सरकार को इस प्रकार के अधिकार दिए गए कि जिससे वह प्रेस पर सेंसरशिप लगा सकती थी,नेताओं को बिना मुकदमें के जेल में रख सकती थी, लोगों को बिना वॉरण्ट के गिरफ़्तार कर सकती थी, किसी भी भारतीयपर बिना जवाबदेही दिए हुए मुकदमा चला सकती थी, आदि….. इसके विरोध में पूरा भारत उठ खड़ा हुआ और देश भर मेंलोग गिरफ्तारियां दे रहे थे. यह वो समय था जब राष्ट्रीय आन्दोलन नया मोड़ ले रहा था……. अमृतसर में इस एक्ट केविरोध में लगभग करीब 5,000 लोग जलियांवाला बाग में इकट्ठे हुए और जनसभा की. उल्लेखनीय है कि यह आंदोलनइसलिए भी गति पकड़ गया था क्योंकि पंजाब के दो लोकप्रिय नेताओं सत्यपाल और सैफुद्दीन किचलू को इस एक्ट केतहत पहले गिरफ्तार कर कालापानी की सजा दी जा चुकी थी. जब भीड़ इकट्ठी हुयी तो इस भीड़ पर हुकूमत ने गोलियाँचलवा दीं. तत्कालीन ब्रिटिश सरकारी आंकड़े कुछ भी कहें अनाधिकारिक आँकड़ों के अनुसार इस गोलीबारी में 1000 सेअधिक लोग मारे गए और 2000 से अधिक घायल हुए. राष्ट्रीय आन्दोलन का अगला चरण इसी घटना की परिणिति थे।
जलियां वाला बाग में यूँ तो काफी पर्यटक व दर्शक थे. रात में यहां लाइट-साउण्ड शो भी होता है. मगर इस स्थल को देखकरएक टीस भी उठी कि इस स्थल के संरक्षण पर यूँ तो काफी ध्यान दिया गया है, परन्तु शायद इस स्थल को और भीगरिमामयी ढंग से संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है. यही वे चन्द जगहें है जो हमारे राष्ट्र के ’वर्तमान’ का आधार है.राष्ट्रीय – शौर्यपरक इतिहास को भूलकर भला प्रगति कैसे पाई जा सकती है? जलियां वाला बाग के अन्दर गोलियों केनिशान और गोली चलाने की जगह ,वो कुआ जिसमें डूबकर हजारों शहीद हुए थे……सब कुछ सुरक्षित है लेकिन शायद इन्हेंऔर सम्मान व सरंक्षण देने की आवश्यकता है।
अमृतसर की इस पवित्र धरती पर ’लाल भवन’ देखना भी पवित्र अनुभूति रही. अमृतसर के मॉंडल टाउन में स्थिति’लाल भवन’ एक निजी ट्रस्ट का मंदिर है, लेकिन इस मंदिर की ख्याति काफी है. इस मंदिर की स्थापना 1923 कसूरपाकिस्तान में जन्मी ’माता लालदेवी जी ’ ने 1956 में की. ट्रस्ट के अधिकारियों ने बताया कि संस्थापिका माता जी कोबचपन से ही दिव्य शक्तियां प्राप्त थी, आरम्भ में यह मन्दिर एक-दो छोटे-छोटे कमरों में चला जो आज के विशाल मंदिर मेंपरिवर्तित हो गया है. इस मंदिर में कई देवी-देवताओं के चित्र-प्रतिमा थे, सफाई-सफाई भी उच्च कोटि की थी. इस मंदिर में’वैष्णों देवी ’ के प्रतिरूप में एक ’कत्रिम गुफा ’ का निर्माण किया गया है. जानकारी हुई है कि माता लालदेवी ट्रस्ट कईसामाजिक कार्यो को करने का काम कर रहा है।
बाघा बोर्डर की परेड और अमृतसर के खान पान – बाज़ार के विषय में कुछ और स्मृतियाँ अगले अंक में….!