सिर्फ ज़रा सी जिद की ख़ातिर अपनी जाँ से गुजर गए एक शिकस्ता कश्ती लेकर हम दरिया में उतर गए तन्हाई में बैठे बैठे यूँ ही तुमको सोचा तो भूले बिसरे कितने मंजर इन आँखों से गुज़र गए जब तक तुम थे पास हमारे नग्मा रेज़ फज़ाएँ थीं और...
हम तुम हैं आधी रात है और माहे-नीम है क्या इसके बाद भी कोई मंजर अज़ीम है लहरों को भेजता है तकाजे के वास्ते साहिल है कर्जदार समंदर मुनीम है वो खुश कि उसके हिस्से में आया है सारा बाग मैं ख़ुश कि मेरे हिस्से में बादे-नसीम है क्या...
कुछ लतीफों को सुनते सुनाते हुए उम्र गुजरेगी हंसते हंसाते हुए अलविदा कह दिया मुस्कुराते हुए कितने गम दे गया कोई जाते हुए सारी दुनिया बदल सी गयी दोस्तो आँख से चंद पर्दे हटाते हुए सोचता हूँ कि शायद घटें दूरियां दरमियां फासले कुछ बढ़ाते हुए एक एहसास कुछ...
उतरा है ख़ुदसरी पे वो कच्चा मकान अब लाजिम़ है बारिशों का मियां इम्तिहान अब मुश्किल सफर है कोई नहीं सायबान अब है धूप रास्तों पे बहुत मेहरबान अब कुर्बत के इन पलों में यही सोचता हूँ मैं कुछ अनकहा है उसके मिरे दर्मियान अब याद आ गयी किसी...